Wednesday, December 4, 2013

कविता- विसरणे केवळ कठीण …!

कविता- विसरणे केवळ कठीण …!
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
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मनात असते जे आपल्या
विसरणे केवळ कठीण …।!

बोलतो खूप काही नेहमी
ऐकतो  इतरांकडून  सदा
शब्दांचे भ्रम-विभ्रम  सारे
विसरणे केवळ कठीण …।!

सोबती  होते काही क्षणांचे
परी आठवणी  खोलवरी
 ते देणे त्यांचे आहे मनात
विसरणे केवळ कठीण …।!

मान मिरवणे सोपे  जरी
अपमान गिळने नसे  सोपे
जखमा हृदयातल्या  साऱ्या
विसरणे केवळ कठीण …।!

वागणे आपले चांगले
अपेक्षा सर्वांचीच  असते
उपेक्षा  आपली हर घडी
विसरणे केवळ कठीण …।!

मनात असते जे आपल्या
विसरणे केवळ कठीण …।!

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कविता- विसरणे केवळ कठीण …!
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
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