Monday, March 28, 2016

Friday, March 25, 2016

कविता- तुला भेटण्याआधी .

कविता- तुला भेटण्याच्या आधी
-अरुण वि.देशपांडे 
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एकटाच मी माझा होतो नव्हते माझे कुणीही 
होती गोष्ट फार साधी, तुला भेटण्याच्या आधी ..||

बरे होते एका दृष्टीने तसे आजवरचे हे जिणे
बेफिकीर -मस्त फिरस्ती मी , तुला  भेटण्याच्या आधी ...||

लाविता तू  दीप आशेचा उजळून गेला मन गाभारा 
तसा ठोस अंधारच होता इथे, तुला भेटण्याच्या आधी 

काय पाहिले तू माझ्यात, जे मला न जाणवले कधी 
अनोळखी किती मीच मला, तुला  भेटण्याच्या आधी ..||

माहिती नव्हते असते काय ते प्रेम, अन ती प्रीती ?
अवगड होते कोडे हे गोड,  तुला भेटण्याच्या आधी ..||
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कविता- तुला भेटण्याच्या आधी .
-अरुण वि.देशपांडे .
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Monday, March 21, 2016

कविता - कविते तू भेटण्याआधी ..! -अरुण वि.देशपांडे .

आज जागतिक कविता दिन..!त्या निमित्ताने .
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आज जागतिक कविता दिन -
त्यानिमित्ताने ..!
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कविता - कविते तू भेटण्याआधी ..!
-अरुण वि.देशपांडे 
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तू भेटण्याआधी
हे कविते ,मी कधी 
एक ओळही ती साधी 
 नव्हती लिहिली कधी  ..!

तू भेटण्याआधी तशी 
कवींच्या कवितेतून 
भेटत होतीस कधी कधी  
 फक्त थेट भेट नव्हती कधी ...!

चंद्र -चांदण्या, आकाश 
नुसते पाहिले होते आधी 
मना दिसले नव्हते कधी 
कविते तू भेटण्याआधी ...!


वरवरचे रूप तुझे वेगळे 
अंतरंगी असे  न्यारीच तू 
जाणवले नव्हते हे कधी 
कविते तू  भेटण्याआधी ...!
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कविता - कविते तू भेटण्याआधी ..!
-अरुण वि.देशपांडे 
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Saturday, March 19, 2016

कविता - जमत गेले मला ..! -अरुण वि देशपांडे

कविता - जमत गेले मला ..!
-अरुण वि देशपांडे 
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का आणि कसे ? शोधात निघता 
 शोधणेही जमत गेले मला ...!

 डोक्यात उजेड पडत गेला 
 जगणेही  जमत गेले मला 

उत श्रीमंतीचा पाहुनी नित्य 
 सावरणे जमत गेले मला  

रंगी-बेरंगी दुनिये पासून 
दूर होणे  जमत गेले मला 

नशिबी  असावे लागते सारे 
समजणे जमत गेले मला ...!

असूया , मत्सर नाही कामाचे 
स्वीकारणे जमत गेले मला ..!
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कविता - जमत गेले मला ..!
-अरुण वि देशपांडे 
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Tuesday, March 15, 2016

बाल-कुमार कथा- आजीची छान युक्ती

प्रतिलिपी.कॉम ने दिलेल्या या लिंकला क्लिक करावे.
आजी-आजोबांनी ही गोष्ट बाल-मित्रांना जरूर वाचून दाखवावी..
बाल-कुमार कथा- आजीची छान युक्ती
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http://www.pratilipi.com/arun-v-deshpande/aajichi-yukti

Monday, March 7, 2016

कविता - महिला दिनाच्या निमित्ताने ..!

कविता - महिला दिन निमित्ताने  ..!
-अरुण वि.देशपांडे 
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स्व-कर्तुत्वाची लखलखीत ठसा 
हर एक क्षेत्रात तिने नोंदवला 
करू या कौतुक तिचेच आजला 
महिला दिनाच्या निमित्ताने ...!

एरव्ही असतोच शब्द-संकोच 
मन नसे मनमोकळे तेव्हढे 
अशोभनीय हे वागणे, सांगावे लागते 
महिला दिनाच्या निमित्ताने ...!

गुणगान करावे ,सलाम करावे 
स्त्री-च्या अफाट कार्यक्षमतेला 
का द्यावे लागती पुरावे -दाखले ?
महिला दिनाच्या निमित्ताने ..!

स्त्री -रूपांचे दर्शन तसे तर 
रोज सर्वांना घडत असते 
डोळ्यांनी फक्त पाहिले जाते
महिला  दिनाच्या निमित्ताने ..!
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अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
मो-९८५०१७७३४२ 
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कविता - सांगू सखे काय तुजला........!

एक जुनीच कविता -नव्या मित्रांसाठी -
कविता - सांगू सखे काय तुजला........!
-अरुण वि. देशपांडे
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सांगू सखे काय तुजला मी
हाल माझ्या मनाचे ते कसे ?
नजरेत  नजर मिसळूदे तुझी
कळेल ,तुज  माझे मन ते कसे ....!

स्वप्नात  असतेस तू , अन
सत्यातही मी  पाहतो तुजला
अस्तित्व तुझे, तेव्हढेच जग माझे
हे  एवढेच  आहे ठावे मजला .......!

ओंजळीत आलो घेउनी मी
उमलत्या फुलांचा गजरा
दिसतेस किती सुंदर तू
 खुले तुजला रंग निळा साजरा ....!

म्हणतेस सदाच तू मला
होतसे काय अशा  पाहण्याने ?
जीवन लाभे नवे  मज दरवेळी
सखे , तुझ्या अशा एका पाहण्याने .......!
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कविता - सांगू सखे  काय तुजला ..!
 -अरुण वि .देशपांडे -पुणे.  
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Thursday, March 3, 2016

बुक हंगामा - नुक्कड -कथा उपक्रमाततील माझी कथा- इच्छापत्र ..!

रसिक वाचक हो ,
बुक हंगामा -नुक्कड-कथा उपक्रमात ०९ फेब्रुवारी-२०१६ ला  प्रकशित
माझी कथा "इच्छापत्र " जरूर वाचावी.
त्या साठी काह्लील लिंक वर क्लिक करावे  ही विनंती.
स्नेहांकित -
अरुण वि.देशपांडे
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कथा- इच्छापत्र
अरुण वि.देशपांडे
http://www.bookhungama.com/index.php/blog/2016/02/09/%E0%A4%87%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A3-%E0%A4%B5%E0%A4%BF-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82/

Wednesday, March 2, 2016

काही हायकू रचना - 2


एक हायकू 
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१३.
करू प्रवास
घडेल सहवास
निसर्गाचा हो
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१४.-

भान हरवे
वैभव हे हिरवे
दृष्टी पडता
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१५

ओरबाडणे
संपन्न निसर्गाला
नाही थाबले
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१६
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निरागसता
पावलो पावली
या निसर्गात
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१७

सोबती सारे
ओळखीचेच तरी
परकेच ते
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१८.
पाखरांसाठी
झाडे ही डेरेदार
छानसे घर
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१९.
अपेक्षाभंग
दु:खाचेच तरंग
पाण्यावरती
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२०.
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२१
मुक्त हाताने
मोकळ्या मनाने ते
देतो निसर्ग
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२२.

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बेगडी प्रेम
आहे या माणसांचे
निसर्गावरी
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२३.

मळभ नको
नको काळी किनार
मनआकाशी
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२४
चंद्र आकाशी
सोबतीस तारका
शितलचांदणे
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Tuesday, March 1, 2016

काही हायकू रचना ..!

रसिक वाचक हो- आपण नेहमी माझ्या कविता व चारोळ्या वाचत आहात.
या वेळी  थोडा वेगळा प्रकार सादर करतो आहे. जपानी काव्य प्रकार आहे हा -
जो "हायकू "या नावाने लोकप्रिय आहे.
माझ्या काही रचना आपल्या साठी.
अभिप्राय जरूर द्यावेत.
स्नेहांकित-
अरुण वि.देशपांडे
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०१ एक हायकू -
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हल्लकल्लोळ
अवेळी पावसाचा 
राडारोड्याचा 
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२,
एक हायकू -
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असा रक्षक 
नसावे हो भक्षक
पर्यावरणाचे .
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३,
एक हायकू-
पंढरपूर
भक्तीचा महापूर
विठूचरणी.
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४-
एक हायकू -
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किलबिलाट 
अन चिवचिवाट
गाणे अवीट 
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५-
हायकू-
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नदीच्या काठी
पाण्यावर तरंग
सुर्यास्त रंग 
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६-
हायकू -
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सरिता वाहे 
अनावर ओढीने 
सागराकडे 
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७-
अशांत मन 
निसर्ग एकांतात 
होईल शांत 
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८-
आकाशतारे
दिपावलीचे दिवे
प्रकाशथवे
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९-
हायकू --
अफाट रूप 
निसर्गाचे पहावे 
मन हरवे 
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१० -
--हायकू
रात्र सरते
गगन उजळते
रवी प्रकाशे
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११.
हायकू
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निसर्ग घर
त्यास हो घरघर
माणसामुळे....!
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-अरूण वि.देशपांडे- पुणे.
मो-९८५०१७७३४२