Thursday, March 27, 2014

कविता - शरण श्री स्वामी समर्थ ...!

कविता-   शरण श्री स्वामी समर्थ ....!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
-----------------------------------------------------------------
अर्थहीन जीवनात आता
आणण्या खरा एक  अर्थ
जाऊ मनोभावे आपण हो
शरण श्री स्वामी समर्थ ....!

जीव थकून जातो मग
बुद्धीस येतो मग शीण
हुरूप येण्यास जावे आता
शरण श्री स्वामी समर्थ ….!

प्रयत्न पडती कमी कधी
परिश्रम विफल ही जाती
उमेद  हुरूप येण्यासाठी
शरण श्री स्वामी समर्थ …!
-----------------------------------------------------------------------
कविता-   शरण श्री स्वामी समर्थ ....!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
-----------------------------------------------------------------

Monday, March 17, 2014

कविता - दिसे किती मोहक ही दुनिया रोज रोज ...!

कविता - दिसे  किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
--------------------------------------------------------------------------
दिसे  किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
 हरवून जाते   हे  मन यात  रोज रोज ……!

रूप कोणते खरे , अन खोटे कोणते  ?
गोंधळून जाते  मन बिचारे रोज रोज
तमाशे इथे नित नवीन  होती रोज रोज
 हरवून जाते   हे  मन यात  रोज रोज ………!

रंक ही येथे ,राव ही ते भेटती रोज रोज
कुणी नसे हो कुणा सारखा यातला तो
उर फुटे स्तोवर धावे पैश्या साठी जोतो
दोष देतो  नशिबास  नि  जगतो रोज रोज ……!

अफाट हे दुनिया ,सारेच इथले न्यारे
पसारा मुलखाचा ,वारे इथले  न्यारे
जो लढतो  जगण्याची लढाई  इथली
सलाम त्यास करी  हीच दुनिया रोज रोज …।!

दिसे  किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
 हरवून जाते   हे  मन यात  रोज रोज ……!
--------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता - दिसे  किती मोहक ही दुनिया रोज रोज ….!
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
-------------------------------------------------------------------------------------------------------

Wednesday, March 12, 2014

कविता - मनाची कळी....!

कविता-   मनाची कळी….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
--------------------------------------------------------------------------------

अवचित येणे
तुझे हे भेटणे
सखे -हे पुन्हाचे
वसंत परतणे ……----!

मनाची ही  कळी
गाली तुझ्या खळी
असे  सारी खेळी
ही सखे तुझी …------…!

फुल गजरे
केसात माळले
अन बघ  -खुलले
रूप हे  साजरे …-…---।!

क्षण भारलेले
मनी साठलेले
तुझ्या सवे -सखे
हे अनुभवले …--------।!
-----------------------------------------------------------------------------
कविता-   मनाची कळी….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
--------------------------------------------------------------------------------