Thursday, February 28, 2013

कविता - आपली मराठी ...|

कविता- आपली मराठी..!
(एकता दिवाळी अंक- २०१२ मध्ये प्रकाशित )
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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मराठी असे माझी मायबोली
सर्व ठिकाणी असावी हीच बोली
किर्तीरुपाने राहावी नित्य दिगंत
साहित्य रूपाने मनात ही बोली .....।।
कवी असो वा असोत लेखक
कौतुक गावे सदाच तुम्ही
गा मराठी , लिहा  मराठी
बोला भाषा  आपली  मराठी.............।।
ज्ञानराजाने म्हणुनी  ठेविले
अमृता समान आहे  मराठी
करू पोषण आपल्या मनाचे
अमृत प्राशन  करुया  मराठी ............।।
आजचे पालक असुदे ध्यानी
नव्या पिढीच्या ठसवा  मनी
संस्कार धन आहे ही मराठी
बोलती ठेवा आपली  मराठी  ..............।।
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कविता - आपली मराठी ....।
(एकता दिवाळी -अंक- २०१२-मध्ये प्रकाशित )
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Monday, February 25, 2013

कविता -माणूस ...!

कविता ---"माणूस ...!
(मन डोह कविता संग्रहातून )
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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चेहेऱ्या आडचा  माणूस
जमेल तसा वाचावा
असतो असा खरा
कवितेतून सांगावा ....!
माणसात रमावे अन
माणुसपण जोडावे
सुख-दुखाचे  भोग त्याचे
कवितेतून मांडावे ......!
कवितेने मज तसे
खूप असे दिले
दुर् देशीचे  स्नेहाळ  पक्षी
कवितेच्या फांदी भेटले ....!
वेल्हाळ पाखरू मनाचे
उंच उंच झेपावते
गाव कवीचा दिसता
तिथेच भिरभिरते ......!
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कविता -माणूस ...!
(मन डोह" कविता संग्रहातून )
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Friday, February 22, 2013

कविता -खूप वाईट वाटते तेंव्हा ...!

कविता -    खूप वाईट वाटते तेंव्हा ...!.!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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आपले  म्हणवणारे  जेंव्हा
वाऱ्याप्रमाणे बदलून दिशा
समोरून जातात हे जेंव्हा
खूप वाईट वाटते  तेंव्हा ...!
काय गृहिते असतील ? या
स्व-केंद्रित  माणसांची ,ज्यांना
कधी  पर्वा नसते  कुणाची ..
भावना तुडवुनी जाती
खूप वाईट वाटते  तेंव्हा ...!
हळुवार ,प्रेम भावना यांना
किंमत नसते यांच्या लेखी
पैसा असतो  यांचा  सोबती
नसतो दुसरा कुणी सोबती
खूप वाईट वाटते तेंव्हा.......।।
माणसे कामा येती शेवटी
माहित नसेल का हे यांना
तरी लोटुनी देती माणसाना
खूप वाईट वाटते तेंव्हा ....।।
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कविता - खूप वाईट वाटते तेंव्हा ....!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Wednesday, February 20, 2013

कविता - मनी वसे ते स्वप्नी दिसे.......!

कविता -

मनी वसे ते स्वप्नी दिसे .....!

-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.

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मन आपले असे कसे ?

विचारू नका हो हे असे

जितुकी माणसे भोवती

तितुकी मने वेगळी असे.....।।१ ।।

रंगुनी जाणे स्वप्नात हा

छंद मनाचा आवडता

मनात मग जे रेंगाळे

मनी वसे ते स्वप्नी दिसे ....।। २ ।।

वास्तवातील जगणे हो

परीक्षा मनाचे रोज असे

श्रांत होण्यासठी बिचारे

स्वप्नी आनंद शोधीतसे ....।।३ ।।

सुखाच्या शोधात निघता

मृगजळ दिसे ठायी ठायी

निराशा घेरुनी टाकी मना

त्यास स्वप्न उभारी असे ......।।४ ।।

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-कविता - मनी वसे ते स्वप्नी दिसे....!

-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.

Friday, February 15, 2013

कविता - बाजार


||श्री ||                                                                      -अरुण वि .देशपांडे -पुणे.
कविता - | |  बाजार ||
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बाजारात गेलो मी देखण्या |, चक चकाट कसला होता ..|
घेउनी गेलो  पैसे मी खरे |, माल तिथला फसवा होता ...||
माणसांची गर्दी तुडुंब ती ,| पैश्यांचा खण खणात  होता .|
बेगडी सारे चमकते ते ,| मुखवटयांचा  ताटवा  होता ....||
डोळे भिरभिरते सगळे ,| पाहण्यारांना सोस होता ..........|
विकण्यासाठी काय नव्हते ?| ,जो-तो  चमचमता काजवा होता..||
भावना घेउनी मनातल्या ,| कुणी आलाच चुकून येथे ...|
कवडीची ना किमत त्याला |, दलालांचा तो कालवा होता ..||
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कविता  ||- बाजार ||                                                             -अरुण वि .देशपांडे -पुणे.

Tuesday, February 12, 2013

कविता - भेट तुझी नाही ,? तर नाही .......!


 कविता - भेट तुझी नाही ? नाही तर , नाही ....!
-अरुण वी.देशपांडे -पुणे
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  अनोळखी  तू , तरीही
  ओळखीचीच  वाटली
  कुणास ठाऊक  मग
  भेटण्याची ओढ लागली .....!....।।१ ।।
  मी भेटीस दरवेळी
  चार शब्द तुजसाठी
  सुंदर  फुले  आणली
  खोटी स्तुती का वाटली ?......!..।।२|।
  तुझ्यात  काय  चांगले !
  तुलाच  खबर  नाही
  हेच सांगितलेन  मी
  विश्वास तुजला नाही  ...!  ........।३ ||
  भेटणे एकमेका हे
  असे  प्रेमच  नेमके
  मैत्री असेल सुंदर
  असे  का वाटत नाही  ?............ ।।४ ||
  योगायोग हा  छानसा
  भेटीचा नेहमी मानिला
  आग्रह तरीही नाही
  भेटतुझी नाही ?  नाही तर,नाही ....!............ ।।५ ||
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कविता - भेट नाही तर, नाही ..!
-अरुण वी.देशपांडे -पुणे.

Saturday, February 9, 2013

कविता - हे बघ...!


कविता - "हे बघ ---!                           -अरुण.वि.देशपांडे-पुणे
 हे बघ !
मनाच्या देव्हाऱ्यात
मनापासून आवडणारी
एक प्रतिमा असावी
ती कुणाची असावी  ?
हे बघ..!
अशी नियमावली अजून तरी नाही .
कुणी-कुणाच्या मनात भराव
हे असे ,कधी ठरवून का होत असत  ?
हे बघ !,
विचित्र वाटावेत ,
असे अपघात नेहमी होतच असतात
तसा हाही अपघात कधीच झालाय -
यात जखमी झालोय मी -
तू नाही...!.
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कविता -" हे बघ --!                                अरुण.वि .देशपांडे -पुणे

Saturday, February 2, 2013

लेख- पालथ्या घड्यावर पाणी ..!

श्री ||
लेख- पालथ्या घड्यावर पाणी--!
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मित्र हो-
आपले जीवनानुभव समृध्द करणारे वाक्य-प्रचार आपण नित्य ऐकत असतो.
"पालथ्या घड्यावर पाणी -- म्हणजे आपल्या प्रय्त्न्यांना येणारे निराशाजनक फळ.
पुष्कळ वेळा आपल्यावर "कुणाला काही समजावून सांगण्याची वेळ येते ", यात
अपेक्षा अशी असते की -निदान समजावून सांगितले तर डोक्यात काही  प्रकाश पडेल..!",
पण बहुतेक वेळी वाट्याला निराशाच येते .
याचे कारण असे  की- "" ज्यांना आपण हे सांगत असतो, त्यांनी त्यांच्या
 "मनाचे कान बंद करून ठेव्लेलेले  असतात.
दर्शनी कानांवरती पडणारे शब्द मना- पर्यंत पोहचतच नाहीत .
बरे "पालथ्या घड्यावर पाणी "- हा अनुभव सगळ्या वयोगटातील व्यक्तीकडून येतो .
साहजिकच ' जे समजावून सांगण्यास तयार असतात, त्यांच्या वाट्याला कधी कधी
दुरुत्तरे ऐकण्याची ही वेळ येते." त्यामुळे 'ज्या व्यक्ती शांत स्वभावाच्या आहेत ,अशांना
"निदान तुम्ही तरी थोडे सांगून बघा .." अशी विनंती केली जाते.
आपण सकाळी खूप छान समजावून सांगतो, समोरचा ऐकून ऐकल्या सारखे करतो आणि,
थोड्या वेळाने जाणवते " या माणसात तर काहीच बदल झालेला नाहीये ..!
यालाच वैतागून आपण म्हणतो- "सारे पालथ्या घड्यावर पाणी ..!
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लेख- पालथ्या घड्यावर पाणी ..!
अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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कविता - तो रस्ता ही मज आता दुरावला ...!

कविता - तो रस्ता ही मज आता दुरावला
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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दुरावलो तुज पासुनी  ज्या समयी
किती यातना  त्या  जाहल्या मनाला
चाललो   रस्त्याने सोबत आपण
तो रस्ता ही मज आता  दुरावला .....!
त्या एका संध्याकाळी तूच तर
प्रेम ते  आहे किती - हे सांगितले
जीव कानात आणुनी  अन मी ऐकले
  नि , हात  हातात तू माझा घेतला ....!
एका सकाळी  अचानक  मग  एक
वावटळ  गैर -समजाची   आली
वादळात त्या  ,शब्द तुझा विरला 
तो रस्ता ही मज आता दुरावला .......!
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कविता - तो रस्ता ही मज आता  दुरावला ...!
-अरुण .वि.देशपांडे -पुणे.
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