Wednesday, April 27, 2016

कविता- गण गण गणात बोते..!

कविता - गण गण गणात बोते
-अरुण वि.देशपांडे
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जपनाम गोड ओठी येते
गण गण गणात बोते..!!
या नामाची लागता गोडी
भक्तीचे भरते मनात येते
स्मरण स्वामींचे करू,म्हणू
- गण गण गणात बोते....||
भक्तांचे करण्यासी रक्षण
शेगावी प्रकटले हो स्वामी
भावभक्तीने भक्त म्हणती
स्वामी करा आमचे रक्षण ...||
अस्वच मन निर्मल होई
अस्थिर मन हे होई स्थिर
शांती मना मिळते म्हणता
गण गण गणात बोते....||
हात जोडूनी ध्यान करावे
डोळे भरुनी दर्शन घेता
जपनाम गोड ओठी येते
गण गण गणात बोते..!!
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कविता - गण गण गणात बोते
-अरुण वि.देशपांडे
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Friday, April 22, 2016

जागतिक -पुस्तक दिनानिमित्त - कविता - पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!

जागतिक -पुस्तक दिनानिमित्त -
कविता -
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
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ग्रंथांच्या थोरवीची महती 
संत -थोर विभूती सांगती
घडे सदाच सत्संगती ती
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
जिज्ञासा ,कुतूहल-पूर्ती कोडे
असो ही कितीही अवगढ
वाटू लागेल ते सोपे थोडे
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
मनाच्या अंगणात पडतो
ज्ञानाचा निर्मळसा प्रकाश
पाला पाचोळा कचरा जातो
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने
सिमेंटच्या जंगलात माणसं
चार भिंतीत ती मित्राविना
कमी होईल सारी वेदना
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
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कविता -पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
मो-९८५०१७७३४२
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Saturday, April 16, 2016

pratilipi.com marathi पत्र लेखन स्पर्धा - माझा लेखन सहभाग - नव्या पिढीच्या मित्रास.


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पत्रशीर्षक- नव्या पिढीच्या मित्रास..!
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नव्या पिढीच्या मित्रास
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Saturday, April 9, 2016

कविता - तसेच राहिले ..!

कविता -  तसेच राहिले ..!
-अरुण वि.देशपांडे
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अंतर समोरा समोरचे  खूप जवळचे ते वाटले
नडला फाजील विस्वास  अंतर तसेच  ते राहिले ...।।

आरसे होते समोर खुपसे  धुळीचे थर खूप साठलेले
आता साफ करायचे कुणी ? ते तसेच धूळ खात  राहिले  ...।।

दिला नाही आधार कुणी सावरणे तेच नाही जमले
मूडपलेले हात घडीचे ते   हात तसेच ते राहिले  ..  ।।

ढासळून गेलेत ढिगारे  विझले नाहीत निखारे
धूर कोंडला घरात  दरवाजे बंद तसेच राहिले ..  ।।
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कविता - तसेच राहिले  !
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
मो-९८५०१७७३४२
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Friday, April 1, 2016

कविता - गोष्ट आहे हीच खरी .

कविता - गोष्ट आहे हीच खरी .
-अरुण वि.देशपांडे 
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घुटमळती पावले  अजुनी त्या वळणावरी
जायचे पुढती मागचे टाकुनी मागे जरी      .||

भास होते ते सारेच मनास ते जे जे वाटले 
 व्रण जखमांचे आत ताजे वरुनी कोरडे जरी ..||

का असे वागती माणसे जी आपलीच वाटली 
होती नाती आपल्यातली ती खोटी की खरी ?..||

हात दिलेत ते  साथ सोबत करण्यासाठी 
का हात हे अचानक जीवाचा असा घात करी ..||

निसरड्या रस्त्याची वाट मोह याचाच होई 
बिकट पायवाट आजकाल जो तो टाळतो खरी  ||

दिपवणारे प्रकाशझोत सतत जे डोळ्यावरी 
पाहावे नेमके काय काय मनास पडे भ्रांत खरी ...||

असेच आहे वर्तमान सांप्रत ,जगणे हतबल 
माना  अथवा न माना  ,गोष्ट आहे हीच खरी ....||
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-कविता - गोष्ट आहे हीच खरी ..
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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