कविता-घडवा मनासी हो समर्थ || -अरुण.वि.देशपांडे- पुणे.
होऊ नये हातुनी आमुच्या
कधी शब्दांचे हो अनर्थ
समजदार होण्यास आम्ही
घडवा मनासी हो समर्थ.........||
भक्तवत्सल तुम्ही श्रीगुरू
कल्याण करिता या जिवांचे
आम्हीच अस्थिर मुलखाचे
निट वाट दाखवा समर्थ .......||
नामस्मरण श्रीहरीचे हे
मना तोषवे किती किती ते
श्रीहरी - श्री हरी या नामाची
गोडी आम्हा लागू द्या समर्थ ....||
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कविता -|| घडवा मनासी हो समर्थ ..|| -अरुण वि .देशपांडे-पुणे-
मो- ९८५०१७७३४२.
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