कविता - तू सांग बरे ....!
- अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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अंगणी या ,रांगोळ्या शब्दांच्या रेखाव्या,
शब्द तुझे , भाव - भावना त्या खुलाव्या
एकांती असता तू संध्या समयी कधी
मनात त्या व्याकूळ आठवणी याव्या ....।। १।।
उत्कट प्रतिबिंब मनाचे दिसेल का
गीत गोड शब्दरूपात करशील का ?
सरोवर हे मनाचे ,पाहता तू जरी,
काय दिसले तुज , ते मज सांग तरी..!......।।२ ।।
सुंदर चित्रात आता रंग भर बरे ,
सांग भासे कसे सखे, हे चित्र तुज खरे..!
प्रेम असे जादू भरे ,मना तू सांग बरे
आवाज देईन मी साद तू देशी बरे..!.........।। ३ ।।
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कविता - तू सांग बरे ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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