Wednesday, February 8, 2012
जय श्रीस्वामी समर्थ -
आज गुरुवार - श्री चरणी ही अक्षरसेवा सादर अर्पण .
कविता -- श्री समर्था ....||
गुरुराया कठीनसे सारे काही
कुणाचा कुणाला उरला धाक नाही
निसरड्या झाल्या वाटा भवतीच्या
पाऊलवाटाही धड उरल्या नाही ..........||
सावट लाचारीचे हो चोहीकडे
धावे माणूस आहे पैसा तिकडे
वेळ नाही कुणाजवळ थांबण्या
पळतो जो- तो , मिळे ज्याला जिकडे ....||
बदलली माणसेच सारी किती
सरड्यापरी हे रंग बदलती
समज यावी आता या माणसांना
तव कृपेने बदलावी यांची मती .............||
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कविता -श्रीसमर्था " -अरुण वि .देशपांडे-पुणे .
मो- ९८५०१७७३४२.
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|| सुख या परते नाही ....!
ओढीने येतो दरवेळी भेटण्यासाठी तुला
नि भेटते सस्मित तू , सुख या परते नाही ...||
नजरेच्या नजर खेळात आपले हे सारे
शब्दाविना सांगता येणे, सुख या परते नाही ..||
विवंचना आधीच त्या ,भर त्यात काळज्यांची
आधार-स्पर्श एकमेका ,सुख या परते नाही ..||
रस्ते चालू सोबतीने आता ,एकट्याने ते नाही
दो सावल्या भासू दे एक , सुख या परते नाही ..||
घर दोघांचे आपुले , स्वर संवाद साधण्या
यावी माणसे आपुली , सुख या परते नाही ......||
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अरुण.वी.देशपांडे-पुणे. कविता-"सुख या परते नाही "
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जय स्वामी समर्थ.|| -अरुण.वि.देशपांडे- पुणे.
आज गुरुवार श्री चरणी नवी रचना सदभावे सादर आहे.
कविता: "स्वभाव- बदलावा समर्था ||
रंगलो भजनी जरी आम्ही
परी मन भटकत राही
स्मरण करता हो समर्था
व्हावा बदल स्वभावी काही .....|१||
जावो चंचलता या जिभेची
बोल बोलते ही काहीबाही
आवरण्या या चहाट ल जिभेला
उपाय करा समर्था काही .........||२||
कानांनी ऐकेले जेजे काही
डोळ्यांनी पाहिले जेजे काही
सत्यता आधी जाणुनी घ्यावी
नंतरच ते बोलावे काही ..........||३||
सागणे हे तुमचे पटते
तरी प्रकाश पडत नाही
नामस्मरणाने हो समर्था
उजेड पडू द्या मनी काही .......||४||
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कविता- स्वभाव"- बदलावा समर्था ..|| -अरुण.वि .देशपांडे-पुणे.
दि.०२ फेब्रुवारी -२०१२. मो- ९८५०१७७३४२.
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कविता-साइकिल"
सायकल -
प्रदुषणाच्या रोगट दिवसात
घ्यावी पुन्हा हिचीच सोबत
आरोग्याची बिघडलेली आपली सायकल
रिसायकल - करेल हो आपली हीच सायकल.
चला वापरू या भल्या साठी आपल्या
जुन्या जमान्यातील ही सोबती -आपली सायकल.
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-सायकल" -अरुण.वि. देशपांडे -पुणे
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कविता -कोलेज निरोपाच्या दिवशी
Sunday, February 5, 2012
कविता- जाता - जाता "
कविता- जाता जाता ...|| -अरुण वि .देशपांडे-पुणे.
काही हुकले काही चुकले , कसला हिशेब जाता जाता
थोडे थोडे जरी जमले ,चुकते करू जाता जाता .......||
पाहता वळून मागे आता ,मन भडभडे जाता जाता
पुन्हा पुन्हा मायाबजारी या, नकोच गुंतणे जाता जाता ..||
कैसे शब्द - कसल्या भावना , आठवणे नको जाता जाता
दुखावली असतील सारी , नको उगाळणे जाता जाता .. ||
कैफ मस्तीखोर जगण्याचा ,आठवतो आता जाता जाता
बरे नाही सारे गमावणे , सांगावे हे आता जाता जाता ....||
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-कविता- जाता जाता ..|| -अरुण वि .देशपांडे- पुणे.
दि.०२ फेब्रु.-२०१२. मो- ९८५०१७७३४२.
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