Friday, October 2, 2015

कविता - मन हे ...!

कविता - मन हे ...!
-अरुण वि .देशपांडे .
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धुक्यात हरवलेल्या वाटा
शोधिते शोधिते मन वेडे 
क्षितिजा पर्यंत वाटा असती
धावते तिथ पर्यंत वेडे .....!
निळ्याशार निरभ्र अंबरी
मनपाखरू फिरे भिरभिरी
सायंकाळी संधिप्रकाशात
फिरे माघारी मग मन वेडे ...!
पहाटेच्या कोवळ्या उन्हात
होई पुन्हा रोज ताजेतवाने
विसरुनी कालची निराशा
मन भिडे जीवनास नव्याने ....!
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कविता - मन हे ...!
-अरुण वि .देशपांडे -पुणे..
मो-९८५०१७७३४२
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कविता - इथे ...!

कविता - इथे ...!
-अरुण वि .देशपांडे .
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मन थिजले भावना गोठल्या
आपलेपणाचा बर्फ आत इथे 
वितळणार आता काहीच नाही
नजरेत फक्त गारठा इथे ...!
मित्र सोबती ना राहिले इथे
सावल्या त्यांच्या त्या बेभरोसी
निसरडे झाले ते हमरस्ते
सरळ सध्या वाट्या लुप्त इथे ...!
बातमी - पत्र वर्तमानाचे आता
भयकारी भाविष्य चाहूल देते
स्थिरता ना उरली जगण्यात
अंदाज ना काय घडेल उद्या इथे ?
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कविता - इथे ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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कविता - वाटचाल ही ...!

_कविता- वाटचाल ही..!
_अरूण वि.देशपांडे.
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कितीक योजने चालुन झाले अंतर सारे
परी आणिक आहे करणे वाटचाल पुढची
उगवती हर एक नवी पहाट ही रोजची
भरते उमेद नवविश्वासाच्या वाटचालीची
थकल्या भागल्या जीवा आधार देण्यास
शितल चांदणे देती तारे सारे आकाशाची
बदलो कितीदाही दुनिया नजरे समोरची
ईच्छा मनात कणखर वाट पूर्ण करण्याची!
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कविता_ वाटचाल ही..!
_ अरूण वि .देशपांडे
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कविता - भाव मनीचे ..!

कविता - भाव मनीचे …!
-अरुण वि  देशपांडे .
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जुळवाजुळवी ती शब्दांची
सोपी असते ?, मुळीच नाही
असेल समजदार समोरचा
अशी खात्री देता येत नाही…!

सांगणे तसे सारेच कुणा
कधी रडगाणे ना ठरावे
काय सांगावे ,नि काय नाही
हे ज्याचे त्यानेच ठरवावे …!

बोजड अपेक्षांचे ओझे ते
आत साठवणे बिनकामी
समोरच्या मनात प्रतिमा
नसावी कधी ती कुचकामी …!

भाव भावना व्यक्त करणे
ओढ असते हरेक मनाची
आठवणी असतात याच्या
गुंतवणूक हो हीच मनाची …!
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 कविता - भाव मनीचे …!
-अरुण वि  देशपांडे .
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