Thursday, May 30, 2013

कविता - काही कळेना ....!

कविता - काही कळेना … !
अरुण वि. देशपांडे -पुणे
-------------------------------------------------------------------------------
दिसती मख्ख्से हे चेहेरे भोवताली
खदखदे आत काय ?, काही कळेना …….॥

विपरीत झाली अवस्था ही आज सारी
झाली मने कोरडी , कुणी हळह्ळेना ……॥

जखमा होती मना नाजूक त्या कितीदा
वागू नये असे कळते , पण का वळेना ……. ॥

भोग आले वाट्यास , भोगणे ते चुकेना
जळते , त्यालाच कळते , कुणा कळेना ……. ॥

मन बोलते माझे , माझ्याशी वेळोवेळा
काय करावे अशावेळी , त्यास कळेना ……… ॥
--------------------------------------------------------------------------------------
कविता - काही कळेना …।
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
-----------------------------------------------------------------------------------------

Sunday, May 19, 2013

कविता - स्पीड- ब्रेकर ..!

कविता - स्पीड- ब्रेकर ….!
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे
-------------------------------------------------------------
तुझ्या समोरून जाणारा नेहमीच
अडखळतो ,धडपडतो , नि पडतो
ठेचा लागतात , आतून जखमी होतो
शब्द तुझा एकेक  स्पीड -ब्रेकर असतो ….।

तुला असेल रे मिळाली देणगी गोष्टींची
म्हणून सगळेच तुझ्या सारखे असतात का रे ?
तू पैशाने आहेस मोठा ,मनाने किती छोटा    !
तुझ्या बद्दलचा तुझा समज तद्दन खोटा असतो
शब्द तुझा एकेक , स्पीड -ब्रेकर असतो …!

तू ,तुझा अनुभव ,वापर ना मित्रान साठी
अरे आधार दिलास ना तू, उभे राहतील नव्याने
पण आमचे  अंदाज तू नेहमीच चुकवतो
शब्द तुझा एकेक -, स्पीड -ब्रेकर असतो …. !

चालणार्याला रस्ता जो दाखवतो ,तो एक
पथदर्शक असतो,दिशा नवी देणारा असतो
दिशाभूल करीत राहण्यात तू आनंद मानतो
शब्द तुझा एकेक -, स्पीड -ब्रेकर असतो …।

सांगितले तुला आज मित्रा मनातले सारे
राग करायचा नसतो आपल्या माणसाचा रे
खूप वेळ अजूनही तुझ्या हातात रे असतो
लक्षात ठेव आपला शब्द एकेक उभारी देणारा असतो ….
-------------------------------------------------------------------------------------------
कविता - स्पीड- ब्रेकर …!
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
---------------------------------------------------------------------------------------------

Monday, May 13, 2013

कविता -न सांगताच सारे कळूनी आले ...!

कविता - न सांगताच सारे कळूनी आले ….!
-------------------------------------------------------------
कालच्या भेटीत दोन डोळे बोलले
न सांगताच सारे कळूनी आले ….!!

आकाशीचे चांदणे ते सोबत होते
मंद वारे खुशीत मधुर गात होते
मनास आनंदाचे उधाण आले
न सांगताच सारे कळूनी आले ……

सागर किनारी वाळूत उमटले
तुझ्या नाजूक पावलांचे ते ठसे
खुलता गाली स्मित नाजुकसे
न सांगताच सारे कळूनी आले ….।

घर दोघांचे आता तू सजवले
स्वप्ने गोड सारे आता सजले
मनातले गुपीत तुझ्या सखये
न सांगताच सारे कळूनी आले.…….।
--------------------------------------------------------------------------------------
कविता - न सांगताच सारे कळूनी आले ….।
कविता - अरुण वि .देशपांडे -पुणे .

Friday, May 3, 2013

कविता - सांज ही, न सांगताच मावळून गेली ...!

कविता - सांज ही , न सांगताच मावळून गेली …!
अरुण वि देशपांडे -पुणे
------------------------------------------------------------------------------
वेळ सारी ती केव्न्हाच निघुनी गेली
लाट अकस्मात आली विरून गेली
समुद्राच्या काठी तसाच तिष्ठत तू ,
सांज ही , न सांगताच मावळून गेली …!

हातात जरी नसे कधी काही आपुल्या
परक्या सावल्या ही होती की आपुल्या
वीज ती आली अन डोळे दिपवून गेली
सांज ही , न सांगताच मावळून गेली …!

सोबतीची सवय मनासी ती होते
मनात अलगद मन गुंतुनी जाते
पायवाट सोबतीची हरवून गेली
सांज ही, न सांगताच मावळून गेली …!
--------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता - सांज ही, न सांगताच मावळून गेली …!
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .

Wednesday, May 1, 2013

कविता- कविता लिहितांना मला ...!

रसिक हो-
काल नाशिक "गारवा"- स्नेह्-सम्मेलनात मी सादर केलेली
माझी कविता -
"कविता लिहितांना मला "- आपल्यासाठी सादर -
------------------------------------------------------------------------------
कविता लिहितांना मला -
(मन डोह कविता संग्रहातून)
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता लिहितांना मला
नव्याने सापडतो मीच मला
हरवून गेलेले खूप काही
अलगद सापडते मग मला …।!

नाद अनाहत ऐकू येई
अंतर्बाह्य भारला जाई
विसर पडे जगाचा मग
कविता लिहितांना मला ……।

माणसातला माणूस कसा ?
जगण्यातले जगणे कसे ?
उलगडते हे अवघे कोडे
कविता लिहितांना मला …।

जग असू दे कितीही कठोर
शब्द असती फुलापरी कोमल
विशाल अर्थ छटांच्या जगात या
सहज प्रवेश असतो मला ……।

लिहितांना कविता मला
नव्याने सापडतो मीच मला ….!
------------------------------------------------------------------------------------
कविता लिहितांना मला …….!
(मन डोह कविता संग्रहातून)
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .