कविता - , नशिबास वेळ हो मिळेना ....!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे .
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वेदना -दुख: यातनांची रात्र सरता सरेना
भोग असे हे नशिबात का माझ्या ? काही कळेना ||
मान्य आहे मजला .सुख- दुखः या जीवनाच्या बाजू
सुख दाखविते वाकुल्या ,दुखः ते पळता पळेना ||
अंधार असतो म्हणे , आपला पाहुणा हा रात्रीचा
बसला इथेच हा ,सकाळ झाली कधी ? ते कळेना ||
येईल अशी एक ,जी असेल पहाट माझ्यासाठी
जीव आला कंठाशी आता , वेळ येण्याची ती जुळेना ||
का व्यर्थ शोक करिसी असा ,? विचारता कुणी , सांगे
भले करण्या माझे, नशिबास वेळ हो मिळेना ....! ||
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कविता - , नशिबास वेळ हो मिळेना ....!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे .
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-अरुण वि. देशपांडे -पुणे .
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वेदना -दुख: यातनांची रात्र सरता सरेना
भोग असे हे नशिबात का माझ्या ? काही कळेना ||
मान्य आहे मजला .सुख- दुखः या जीवनाच्या बाजू
सुख दाखविते वाकुल्या ,दुखः ते पळता पळेना ||
अंधार असतो म्हणे , आपला पाहुणा हा रात्रीचा
बसला इथेच हा ,सकाळ झाली कधी ? ते कळेना ||
येईल अशी एक ,जी असेल पहाट माझ्यासाठी
जीव आला कंठाशी आता , वेळ येण्याची ती जुळेना ||
का व्यर्थ शोक करिसी असा ,? विचारता कुणी , सांगे
भले करण्या माझे, नशिबास वेळ हो मिळेना ....! ||
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कविता - , नशिबास वेळ हो मिळेना ....!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे .
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