Wednesday, November 26, 2014

कविता - करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

कविता - करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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काय माहिमा सांगावा कलियुगाचा
मलीन झाले पहा आमुचे  अंतरंग
स्वछ करण्यासाठी हा  मनगाभारा
करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

किती प्रलोभने ही  मनासाठी सारी
हे मिळावे ते मिळावे - धडपड ती सारी
वळविण्या या पासुनी मनास ,आता
करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!

नशीब आमुचे इतके धड कुठे आहे
सत्संगा पासून हमेशा दूर दूर राहे
कळण्या यास सारे ते अभंग - रंग
करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

सहृदयी -संत , त्यांचे कृपाळू  अंतरंग
जन प्रबोधनासाठी त्यांनी रचिले अभंग
जानुनी घेता उजळेल आमुचे अंतरंग
करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
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कविता - करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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काय माहिमा सांगावा कलियुगाचा
मलीन झाले पहा आमुचे  अंतरंग
स्वछ करण्यासाठी हा  मनगाभारा
करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

किती प्रलोभने ही  मनासाठी सारी
हे मिळावे ते मिळावे - धडपड ती सारी
वळविण्या या पासुनी मनास ,आता
करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!

नशीब आमुचे इतके धड कुठे आहे
सत्संगा पासून हमेशा दूर दूर राहे
कळण्या यास सारे ते अभंग - रंग
करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

सहृदयी -संत , त्यांचे कृपाळू  अंतरंग
जन प्रबोधनासाठी त्यांनी रचिले अभंग
जानुनी घेता उजळेल आमुचे अंतरंग
करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
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कविता - करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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कविता -आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि ..!

कविता -आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि
  -अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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.आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि
 आठवली मजला तुझी ती विफल प्रेम कहाणी

 आपल्या छोट्याश्या जगात तो राजा -तू राणी
 राजा होता बनेल भुंगा -तू प्रेमात आंधळी राणी

 विनवले तुला कितिदा ओळख  तू त्याला राणी
 डोळ्यावरती होती धुंदी तुझ्या बुद्धी गहाण राणी

.आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि
 आठवली मजला तुझी ती विफल प्रेम कहाणी

  नवथर भावना -अवखळ तरुणाई असेच होते हे
  तू त्याची - तो तुझा , दुश्मन वाटे  दुनिया राणी

  फिरवले तुजला त्याने , गंध-सुगंध तो लुटला
  लुटेरा  होता तो एक ,  त्याला भेटली दुसरी राणी

  पाहिलेस तूच एकदा त्याला  होती कुणी तिसरी
  धावत आलीस त्यादिवशी तू डोळ्यात नुसते पाणी

 .आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि
  आठवली मजला तुझी ती विफल प्रेम कहाणी

   उन्मळून पडली तू नाजूकवेली जशी
   पहावेना आम्हा कुणा तुझी अवस्था ही अशी

   बरे त्यात इतकेच  थोडे तरी भान होते तुजला
   उमजून आला सावकाश तुझा वेडेपणा तुजला

  आवरलेस तू सावरलेस तू , समजदार झाली राणी
 .आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि
  आठवली मजला तुझी ती विफल प्रेम कहाणी
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 कविता -.आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि ।
 अरुण  वि. देशपांडे -पुणे.
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  -अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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.आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि
 आठवली मजला तुझी ती विफल प्रेम कहाणी

 आपल्या छोट्याश्या जगात तो राजा -तू राणी
 राजा होता बनेल भुंगा -तू प्रेमात आंधळी राणी

 विनवले तुला कितिदा ओळख  तू त्याला राणी
 डोळ्यावरती होती धुंदी तुझ्या बुद्धी गहाण राणी

.आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि
 आठवली मजला तुझी ती विफल प्रेम कहाणी

  नवथर भावना -अवखळ तरुणाई असेच होते हे
  तू त्याची - तो तुझा , दुश्मन वाटे  दुनिया राणी

  फिरवले तुजला त्याने , गंध-सुगंध तो लुटला
  लुटेरा  होता तो एक ,  त्याला भेटली दुसरी राणी

  पाहिलेस तूच एकदा त्याला  होती कुणी तिसरी
  धावत आलीस त्यादिवशी तू डोळ्यात नुसते पाणी

 .आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि
  आठवली मजला तुझी ती विफल प्रेम कहाणी

   उन्मळून पडली तू नाजूकवेली जशी
   पहावेना आम्हा कुणा तुझी अवस्था ही अशी

   बरे त्यात इतकेच  थोडे तरी भान होते तुजला
   उमजून आला सावकाश तुझा वेडेपणा तुजला

  आवरलेस तू सावरलेस तू , समजदार झाली राणी
 .आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि
  आठवली मजला तुझी ती विफल प्रेम कहाणी
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 कविता -.आज कित्येक दिवसांनी पुन्हा भेटलीस आणि ।
 अरुण  वि. देशपांडे -पुणे.
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कविता सद्गुरूंचा धावा …!

कविता सद्गुरूंचा धावा …!
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
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करुणा मनात  साठली
चिंता मनात ही  दाटली
सावरण्या आम्हासी आता
सद्गुरू धावा हो  धावा …!

आर्थिक मोहजालात या
मन खोल खोल की रुतले
काढा याजला बाहेर तुम्ही
सद्गुरू धावा हो  धावा …!

तुझे माझे , माझे ना कुणाचे
भांडण ऐहिक सुखांचे
गुंता अवघा सोडवण्या
सद्गुरू धावा हो  धावा …!
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 कविता सद्गुरूंचा धावा …!

-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
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Monday, November 3, 2014

नवे ई-बुक - मनभावन -कविता संग्रह.

माझे नवे ई-बुक -
मनभावन -कविता संग्रह
Bookganga.com
सप्तर्षी प्रकाशन यांनी
प्रकाशित केला आहे.
Manbhavan...
Published....
Bookganga.com

Sunday, September 28, 2014

कविता - हळुवार आठवणी लहरती ..!

कविता - हळुवार आठवणी लहरती .
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे .
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 हळुवार आठवणी लहरती .
जशा अवीट गाण्याच्या ओळी
झिरपती त्यातुनी क्षण ते सारे
बनुनी सहवास गीताच्या ओळी ….!

चंद्र असतो आकाशी विहरत
असते सोबत  लाडकी  चांदणी
मन येते मोहरे रम्याशा वेळी
झिरपती त्यातुनी क्षण ते सारे
बनुनी सहवास गीताच्या ओळी ….!

वास्तव भव्तालीचे नसे सुखद
परी सहवास असीम सुखाचा
नको आठवनी या  बेधुंद वेळी
झिरपती त्यातुनी क्षण ते सारे
बनुनी सहवास गीताच्या ओळी ….!
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कविता - हळुवार आठवणी लहरती .
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे .
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Monday, September 22, 2014

कविता -खंत

कविता -  खंत .
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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कुणी साथ सोडोनी निघुनी जाता .
खंत का वाटावी  हो मनास  आता     ।।

समजुतीच्या  फंदात नको पडणे
कुणी समजुन घेईनासे झाले आता   ।।

भावना झाल्या इथे आता प्रदूषित
मोकळेपणात   परकेपणा   आता     ।।
 
मनाचे बांध ते  कोरडेठप्प  आता 
व्यर्थ  डागडुजी नको करणे आता     ।।
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कविता -  खंत .
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Sunday, September 14, 2014

कविता - खोडून टाकणे मत कुणाचे .

कविता - खोडून टाकणे मत कुणाचे .
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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मोडून टाकणे मन कुणाचे
खोडून टाकणे मत कुणाचे
अजून नीटसे जमले  नाही
काही केल्या शब्द फुटले  नाही .

मुकाटयानेच  ऐकुनी घेतले
बोलणे कुणाचे तोडले नाही
खोडून टाकणे मत कुणाचे
अजून नीटसे जमले  नाही .

आता बोलतो थोडे जरी कधी
कुणीही मनावर  घेत नाही
मोडून  टाकणे मत कुणाचे
अजून नीटसे जमले  नाही .

स्वार्थासाठी वापर करतांना 
मागेपुढे कुणी पाहिले नाही .
आपलीच आहेत माणसे ही
अजून जराही  उमजली नाही

खोडून टाकणे मत कुणाचे
अजून नीटसे जमले  नाही .
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कविता - खोडून टाकणे मत कुणाचे .
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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Monday, September 1, 2014

ओळख भारत रत्नांची - लाल बहादूर शास्त्री

साप्ता.-चपराक -पुणे. अंक.दि. २५ ऑगस्ट २०१४ मध्ये प्रकाशित माझा लेख.
आपल्या अभिप्रायार्थ.
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Photo: साप्ता.-चपराक -पुणे. अंक.दि. २५ ऑगस्ट २०१४ मध्ये प्रकाशित माझा लेख.
आपल्या अभिप्रायार्थ.
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Saturday, August 16, 2014

कविता - तू एकदा तरी यावे ..!

 कविता -    तू एकदा तरी यावे …
  -अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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तू एकदा तरी यावे
मज भेटुनी जावे
बोलणे नाही झाले
फक्त पाहुनी जावे …!

हलके घेऊ नकोस
माझ्या विनंतीला
उशीर नको येण्या
फक्त पाहुनी जावे …!

दिसेल डोळ्यात माझ्या
ज्योत प्रतिक्षेची तुझ्या
मनी आठवणींचे थवे
तू एकदा तरी यावे
मज भेटुनी जावे ….!

काळोख दाटला हा
मज काहीच दिसेना
झाली दिवे लागणी
दिवा लावूनी  जावे
तू एकदा तरी यावे
मज भेटुनी जावे …….
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 कविता -    तू एकदा तरी यावे …
  -अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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Monday, July 28, 2014

कविता -समीप ..!

कविता - समीप ….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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समीप असणे सहजतेने
सुख इतके सुलभ नसते
दूर दूर असतो आपण अन
हसरी तसबीर ही आनंद देते …!

हसरे चित्र तुझे पाहणे
आनंद दिलासा देणारा असतो ,
दूर आहेस,   -आहेस समीप
सहवास हाही सुखद असतो...- !

नितळ भाव नजरेतले तुझ्या
चेहेरयावरी  मधुर स्निग्धता
स्मितातली तुझ्या ही अस्फुटता
सांगे मजला तुझा आपलेपणा …!
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कविता - समीप -.!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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Monday, July 7, 2014

लेख- ओळख - भारत रत्नांची - डॉक्टर बी.सी.रॉय

नमस्कार - साप्ताहिक-चपराक -पुणे .
अंक -दि.०७ जुलै-२०१४ - मधील माझा लेख.
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Photo: नमस्कार - साप्ताहिक-चपराक -पुणे .
 अंक -दि.०७  जुलै-२०१४ - मधील माझा लेख.
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Tuesday, May 6, 2014

कविता- माहेर...!

कविता-  माहेर…!
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
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माहेराचे घर
आहे मोठे छान
झाले जरी मोठी
इथे होते  लहान ….!

दारी उभी असे
वाट पाहे माय
पोर  माझी तिला
दुधावरली साय …….!

आईचे हो घर
सुखाचे गोकुळ
माहेराच मन
मायेच मोहोळ ….!

मुक्कम  सरतो
जीव होतो जड
डोळा काठां पाणी
मनी धड धड ……. !

मनी हूर हूर
होते  आठवण
मन पाखरास
दिसते माहेर ……। !
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कविता - माहेर …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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पुस्तक-परिचय - मनाच्या अंगणात.


रसिक हो-
माझे नवे पुस्तक -
मनाच्या अंगणात "-(ललित लेख)
त्याचा परिचर करून दिलाय -कवी- सुभाष काळे यांनी.
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मनाचे अंतरंग उलगडणारे ललित -लेखन -
"मनाच्या अंगणात …।!
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लेखक-कवी- समीक्षक -बाल-साहित्यकार अशी ओळख असलेल्या
अरुण वि.देशपांडे , यांचे नवे पुस्तक- मनाच्या अंगणात "- नुकतेच वाचले.
२२ लेख असलेले हे लेखन "मन" या संकल्पने भोवती आहे असे जाणवते .

जगातील एकजात सर्वच व्यक्ती नव्हे तर व्यक्तिमत्वाच जनक असलेला
अत्यंत सुक्ष्मातीसुक्ष्म, निराकार , पण ब्रह्मांडात कुठेही ,केव्न्हाही विहार
करण्याची क्षमता असणारा आणि केवळ दोन अक्षरी लहानसे नामाभिधान
धारण केलेला शब्द- "मन".
आपल्या मनाला ", विविध परिमाण , अनेक पैलू आणि-कंगोरे असल्याने
"हे असे मन- "अंगण "- या संकल्पनेत कसे मावेल ? किंबहुना मनाचे अंगण -
मनाला पुरेसे होईल का ?
या जिज्ञासेने "मनाच्या अंगणात"-हे पुस्तक वाचण्यास घेतले .
अत्यंत गूढ विषयाच
आपल्या परीने सखोल चिंतन करून लेखक -अरुण वि.देशपांडे , "मन", या निरा
पण वास्तवात अस्तित्व असलेल्या सत्याशी तादात्म्य पावलेले आहेत आणि वाचकांनाही याची
प्रचीती देण्यात बरयाच अंशी यशस्वी झाले आहेत ", असे म्हणावेसे वाटते.

माणसाचे मन अत्यंत संवेदनशील असण्याकरिता प्रेम, नातेसंबंध , मैत्री ",
निमित्ताने संबंध येणाऱ्या व्यक्तींमध्ये दोष-शोधन " न करता त्यांचा आहे त्या
गुण-विविधते सहित स्वीकार करणे किती व्यापक आणि अक्षय आनंदाचा सोहळा
असतो", याचे विश्लेषण कमालीचे सुंदर ,तसेच वाचकास अंतर्मुख होण्यास आणि
आत्मचिंतन करण्यास प्रवृत्त करते .

या ललित-लेख संग्रहात एकूण २२ लेख आहेत- पैकी काही लेख-शीर्षके …
"मन-एक मित्र आपुला ", "निरोगी मनाचे रहस्य " , हे बंध नात्यांचे ",
घराचे घरपण ", मैत्री -एक चिंतन ", आपले भाव-विश्व ", इ…. .
या पुस्तकातील शेवटच्या काही लेखांच्या बद्दल असे म्हणावेसे वाटते की ,
बदलेल्या सामाजिक आणि वैयक्तिक जीवन-शैलीचे अत्यंत सूक्ष्म निरीक्षण
टिपले आहे .हे करतांना सर्व पातळीवरचा बदल " , हा स्वीकारायला हवा ही
अनिवार्यता जाचक न वाटता स्वागतार्ह कशी करता येईल याचे अनेक मार्ग
सोदाहरण दिले आहेत.

आपल्यात आणि आपल्या मनात बदल घडवणे हे सहजसुलभ नाही" असे
लेखकाने प्रांजळपणे कबूल केलेले असले तरी "हतबलतेचा , असहायतेचा किंवा निराशेचा
सूर कुठे ही आळवलेला नाही ." उलटपक्षी अत्यंत गंभीर अवस्थेतून मार्ग काढीत असलेली
कुटुंब-व्यवस्था , विवाह-संस्था आणि पद्धती " , संस्कार-मुल्यांचा ह्रास " यावर मूलगामी
चिंतन मांडले आहे.

विषयाचा समारोप करतांना लेखक अध्यात्मिक पातळी वरून अत्यंत मौलिक सूचना
करतो " दुक्ख देणाऱ्या अपेक्षा ठेवल्या नाहीत तर मनास सुख देता येऊ शकते.",किंबहुना
ते मिळते .-फक्त याचे अनुभूती घेता आली पाहिजे " असे सांगत शेवटच्या लेखात
व्यक्त केलेल्या मनोगतावर संत श्री ज्ञानेश्वरांच्या पसायदानाचे आशय-शिंपण केले आहे".

"मनाच्या अंगणात " या संग्रहातील लेखनाच्या निमित्ताने लेखक -अरुण वि..देशपांडे
यांनी मनाच्या संदर्भात अनेक प्रश्नांची उत्तरे शोधण्याचा स्तुत्य प्रयत्न केला आहे ",
या बद्दल त्यांचे मन:पूर्वक अभिनंदन
पुस्तक-परिचय -
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सुभाष काळे - पुणे
संपर्क -९८९०४४१५९९
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मनाच्या अंगणात -
-अरुण वि.देशपांडे .
संपर्क - ९८५०१७७३४२
पृ- १०४, मुल्य - रु..१२५/-
प्रकाशक - ज्ञान प्रकाशन- वितरण ,
१०७५ - सदाशिव पेठ -पुणे .
संपर्क - ९८२२२८०४२४ .
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Thursday, April 24, 2014

कविता- सद्गुरू स्वामी समर्थ ...!

-कविता- सद्गरु स्वामी समर्था ...।।
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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भक्तीची गोडी मनास लागो
प्रार्थना  सदा  एक  करितो
करुणायुक्त मनाची  याचना
चरणी तव आम्ही अर्पितो .....!

दर्शन घेता समर्था तुमचे
मनी भाव सुंदर प्रकटतो
नाम स्मरणाचा भाव दीप
मन मंदिरी आम्ही लावतो …।!

दर्शनासाठी  भक्त तुमचा
ओढीने अक्कलकोटी येतो
मन भरून दर्शन होता  तो
मन भरभरून की पावतो …।!
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-कविता- सद्गरु स्वामी समर्था ...।।
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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कविता- निरोप...!

कविता - निरोप...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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संस्कार सावलीत तुमच्या
आम्ही सारे घडलो
आशीर्वाद घेउनी तुमचे
आम्ही पुढे निघालो ………।!

गुरुजनांच्या ज्ञानदानाने
घडलो आम्ही खरोखरी
यश संपादून आता
लौकिक वाढवू परोपरी …….!

द्या निरोप आम्हाला
मन जड जाहले
हात फिरता पाठीवरुनी
डोळे ओले जाहले ……… !
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-कविता - निरोप ….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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कविता- वाढदिवस आज तुझा ...!

कविता - वाढदिवस आज तुझा …!
-अरुण वि देशपांडे .- पुणे .
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दिवस आजचा प्रसन्नसा
वाढदिवस आज तुझा
शुभेच्छा देण्या आला बघ
 बघ हर एक मित्र तुझा ….!

 तारीफ करण्यात तुझी
 शब्द धन्यता नित मानिती
 स्नेहबंध मित्र-मैत्रिणीशी
  रेशीम बंध सारे  मानिती ….!

  स्मित विलसे मुखावरी
  आपुलकी तुझ्या अंतरी
  नजरेत स्निग्धता  दिसते
  जिव्हाळा तुझ्या शब्दांतरी …!

  भाग्य्वानास लाभे असे मैत्र
  लाभते  हे अंतरीचे नाते
  आहोत आम्हीही  भाग्यवान
  अक्षय राहावे  मैत्र  - नाते ….!
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-कविता - वाढदिवस आज तुझा …!
-अरुण वि देशपांडे .- पुणे .
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कविता- नाम महिमा थोर त्याची मोठीच गोडी ...!

कविता- नाम महिमा थोर , त्याची मोठीच गोडी ….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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नामाची हो गोडी ,मनास लागुद्या थोडी
नाम महिमा थोर , त्याची मोठीच गोडी ….!

कठीण वाटे फार गोष्ट ही ,सोपी नसे
मन चंचल भारी ,अजुनी  संसारी गोडी
कानावरी पडो सद्गुरू नाम सदा आता
नाम महिमा थोर , त्याची मोठीच गोडी ….!

उथळ विचार, तसेच आचार  झाले
शब्दांचे बुडबुडे तरंगत आले
कुठे तरी थांबवा आता ही गाडी
नाम महिमा थोर , त्याची मोठीच गोडी ….!

रहा पाठीशी उभे आमुच्या समर्था
भीती घालवा मनातली थोडी थोडी
शांत होता मग मन आमुचे कळेल
नाम महिमा थोर , त्याची मोठीच गोडी ….!
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कविता -नाम महिमा थोर , त्याची मोठीच गोडी ….!
अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Thursday, April 10, 2014

कविता - मज लागो गोडी दर्शनाची ....!

कविता - मज लागो गोडी दर्शनाची …!
अरुण वि.देशपांडे -पुणे,
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विनंती तुमच्या चरणाशी
मज लागो गोडी दर्शनाची ….।।

 शिणले शिणले मन  माझे
 धावाधाव नाही करायची
 मन रमो आता  चरणाशी
मज लागो गोडी दर्शनाची ….।।

मनात असते इच्छा एक
ओढ तुमच्या हो  दर्शनाची
ठेवावे मस्तक चरणाशी
मज लागो गोडी दर्शनाची ….।।

नाही मनास अजून उमज
नाही चिंता त्यास कल्याणाची
उपदेश वाणी पडो कानी
मज लागो गोडी दर्शनाची ….।।
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कविता - मज लागो गोडी दर्शनाची …!
अरुण वि.देशपांडे -पुणे,
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Wednesday, April 2, 2014

कविता - खिन्न अशा या वेळी ...!

कविता - खिन्न अशा या वेळी …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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मावळतीच्या हुरहुरत्या प्रहरी
आठवणीं येती लहरत अंतरी
नजरे समोरचे  भासे परके
उदासलेले  मन  खिन्नता अंतरी …।!

पक्षी येती परतुनी ओढीने किती
दिवस अखेरी त्या आपल्या घरट्यात
असो किती  दूरवर दिवसभर
वळती वाटा  पिल्लांच्या सहवासात ….!

एकटा एक मी, संध्याकाळ एकटी
सोबती एकमेकांचे आम्ही असतो
गाठोडे गत -क्षणांचे बसतो सोडूनी
आठवणी त्या  मग बसती मानगुटी ….!

वियोगाचे गीत माझ्या सदा ओठी
व्याकुळ भाव  दाटतो डोळा काठी
झोपही  घेते  फारकत नेमक्या वेळी
चंद्र नसे सोबती खिन्न अशा या वेळी ……!
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कविता - खिन्न अशा या वेळी …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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Thursday, March 27, 2014

कविता - शरण श्री स्वामी समर्थ ...!

कविता-   शरण श्री स्वामी समर्थ ....!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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अर्थहीन जीवनात आता
आणण्या खरा एक  अर्थ
जाऊ मनोभावे आपण हो
शरण श्री स्वामी समर्थ ....!

जीव थकून जातो मग
बुद्धीस येतो मग शीण
हुरूप येण्यास जावे आता
शरण श्री स्वामी समर्थ ….!

प्रयत्न पडती कमी कधी
परिश्रम विफल ही जाती
उमेद  हुरूप येण्यासाठी
शरण श्री स्वामी समर्थ …!
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कविता-   शरण श्री स्वामी समर्थ ....!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Monday, March 17, 2014

कविता - दिसे किती मोहक ही दुनिया रोज रोज ...!

कविता - दिसे  किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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दिसे  किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
 हरवून जाते   हे  मन यात  रोज रोज ……!

रूप कोणते खरे , अन खोटे कोणते  ?
गोंधळून जाते  मन बिचारे रोज रोज
तमाशे इथे नित नवीन  होती रोज रोज
 हरवून जाते   हे  मन यात  रोज रोज ………!

रंक ही येथे ,राव ही ते भेटती रोज रोज
कुणी नसे हो कुणा सारखा यातला तो
उर फुटे स्तोवर धावे पैश्या साठी जोतो
दोष देतो  नशिबास  नि  जगतो रोज रोज ……!

अफाट हे दुनिया ,सारेच इथले न्यारे
पसारा मुलखाचा ,वारे इथले  न्यारे
जो लढतो  जगण्याची लढाई  इथली
सलाम त्यास करी  हीच दुनिया रोज रोज …।!

दिसे  किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
 हरवून जाते   हे  मन यात  रोज रोज ……!
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कविता - दिसे  किती मोहक ही दुनिया रोज रोज ….!
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
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Wednesday, March 12, 2014

कविता - मनाची कळी....!

कविता-   मनाची कळी….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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अवचित येणे
तुझे हे भेटणे
सखे -हे पुन्हाचे
वसंत परतणे ……----!

मनाची ही  कळी
गाली तुझ्या खळी
असे  सारी खेळी
ही सखे तुझी …------…!

फुल गजरे
केसात माळले
अन बघ  -खुलले
रूप हे  साजरे …-…---।!

क्षण भारलेले
मनी साठलेले
तुझ्या सवे -सखे
हे अनुभवले …--------।!
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कविता-   मनाची कळी….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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Friday, February 28, 2014

लेख- बदल- एक प्रक्रिया.......!

- मित्र हो-
इ- पेपर - पुणे परिचय -पुणे - दि. ७-२-२०१४ -च्या अंकात
प्रकाशित  माझा नवा लेख.
लेख- बदल- एक प्रक्रिया...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
मो- ९८५०१७७३४२
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प्रत्येक गोष्टीत बदल होणे ", ही नैसर्गिक प्रक्रिया आहे .चराचर-
विश्वात बदल होत आले आहेत ,निसर्ग-चक्र बदलते आहे , ज्ञान -आणि-
विज्ञान यांच्या मदतीने आपले जगणे  बदलत असते,  स्थिरता " हे अवस्था
-प्रगतीचे लक्षण समजले जात नाहि.
नवे-नवे बदल होत जाणे, स्वरूपात बदल होत जाणे , कायापालट होणे ,
विचारांचे परिवर्तन होणे" , या शब्दातून "बदल -होणे" हे ध्वनित होते आहे.
सगळ्या गोष्टी आपोआप बदलत असतांना , "बदलण्यास तयार नसणारा -
माणूस ", स्वतहाच्या प्रगतीत मात्र मोठा अडथला बनून राहतो ", हे तो कधीच
मान्य करीत नाही.
खर म्हणजे आपल्याला "बदलण्याची संधी' सारेच जण देत असतात . अगदी
निसर्गा पासून ते ,प्राणी, पक्षी सुद्धा . आपल्या सभोतीची माणसे , समाज ,
हे सुद्धा वेळोवेळी "आपल्यात बदल व्हावा ", म्हणून प्रत्येक वेळी एक नवी
संधी देतात.
माणूस  त्याच्या एका "धोरणा साठी फार परिचित आहे. ते धोरण  त्याच्या
स्वभावाचे द्योतक  देखील आहे . कुणाच्या सांगण्याला न बधनारा -असा माणूस"
आडमुठ्या -धोरणाचा "म्हणून ओळ्खला जातो..".
कुणी नव्या आणि काही बदल करण्याची सूचना जरी  बोलून दाखवली ", तरी
अशा माणसांचे ताल-तंत्र बिघडून जाते . शांतपणे आणि विचार पूर्वक काही
ऐकून घेणे "या माणसांना मान्यच नसते.
"आपल्याच जुन्या आणि कालबाह्य ठरू पहाणाऱ्या  विचारंना आणि कल्पनांना
घट्टपणे चिकटून राहणे ", हा यांचा स्वभाव असतो. "कोणता ही बदल यांना मान्य
होणारा नसतो.
अशा आडमुठ्या स्वभाव्च्या माणसा मुळे" सगळीकडे त्रास होत असतो.
ही माणसे जिथे असतात - तिथे सगळे वातावरण वेगळेच आहे ही जाणवत असते ",
एक प्रकारचे अवघडलेल्या कुंद वातावरणाचा  अनुभव येऊ शकतो.
माणसाचे व्यक्तीरूप "हे सगळ्यांसाठी एक स्वीकार्ह  असे हवे.
कारण -
ज्या ठिकाणी समूह स्वरूपात कार्य करायचे असते -त्या ठिकाणचा प्रमुख "
हा "मन-मिळाऊ , सर्वांना समजून घेणारा , सोबत घेऊन चालणारा , उत्तम
नेता आणि उत्तम श्रोता "असला तर, एक सुखद परीस्थिती  असते .
अशा वातावरणात "कार्यक्षमता अधिक सिद्ध होऊ शकते.
कुटुंब -जीवनात देखील हे परिणामकारक आहे.घरातील
प्रमुख व्यक्ती  मोकळ्या मनाचे, आणि दुसर्याचे समजून
घेऊन त्या प्रमाणे निर्णय घेणारी असेल तर - घरात नेहमीच
छान आणि नवे, तसेच उपयुक्त असे बदल होतात .
आणि ज्या ठिकाणी याचा अभाव असतो " त्या घरातील
जुने-पुराने वातावरण " जाणवल्या शिवाय रहात नाही.
असे असले तरी- "बदलाचे हे वारे "- वाहणे, सर्वांनाच आवडणारे
असते असे मुळीच नाही.
आपल्या घरात , आजूबाजूला  हे असे "बदलाचे वारे " येऊ नयेत "
या साठी प्रयत्न करणारी "आडमुठी माणसे ", आपण पाहतोच असतो .
बदल न झाल्यामुळे , बदल न केल्यामुळे ", आपले काय, किती
आणि  कसे  नुकसान  होत असते ", या गोष्टीवर विचार तरी करून
पाहण्यास काय हरकत आहे ?
असे असले तरी आपण एका बदलाची " नेहमीच चिंता करीत असतो.
हे बदल आहेत माणसाच्या वृतीत होणारे - . आजकाल "हिंसक वृत्ती
आणि विकृती " यांनी सर्वत्र थैमान घातले आहे .
समाजात हे काय चालू आहे ? असा प्रश्न पडला आहे. नैतिकता ,
जीवन मुल्य", आदर्श " यांची चाड न बाळगणारी "ही भीषण माणसे ",
आणि त्यांच्यातील नष्ट झालेली माणुसकी पाहून" मनाचा थरकाप
होतो.
सगळ्या निर्मल भावना , संवेदना ,फुलणारी मने , उमलती शरीरे ,
सगळ्यांचा पाला -पाचोळा करणारी ही माणसे ", यांच्यातील "खरा
माणूस इतका कसा बदलून गेला आहे " ?,
आपल्या भल्यासाठीचे  आणि हिताचे , समाजाच्या कल्याणासाठीचे
होणारे बदल, करावे लागणारे बदल, हे नेहमीच आवश्यक आहे.
पण, समाज-जीवन बिघडवून टाकणारे , नैतिक जीवन उध्वस्त करणारे ,
अशी विकृत - माणसे आणि त्यांनचे हे बेदरकार वागणे "थांबवने "
हे सर्वांचे उद्दिष्ट झाले पाहिजे.
मवाळपणा सोडून , कणखरपणा आला तर च आपण या विकृतीचा
सामना करू  शकतो "आणि हा बदल" दुर्जनाना शासन करण्या साठी
आवश्यक आहे  हे नक्की.
"बहुजन सुखाय -बहुजन हिताय ", या हेतूने आलेल्या ,सुचलेल्या
कल्पना आणि विचार  या दोन्हीचा स्वीकार करून जर आपण
बदल करण्याची तयारी दाखवली  तर ।!
यातून नक्कीच काही तरी विधायक असे हाती लागेल.
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लेख- बदल- एक प्रक्रिया...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.

मो- ९८५०१७७३४२
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Thursday, February 20, 2014

कविता - कहाणी ...!

कविता - कहाणी ...।।
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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नाही राहिले भान मज,  सांगे माझी कहाणी
लक्षात आले अचानक  , का सांगे  मी कहाणी  ?  ।।

दुराव्याची दुनिया  माझी ,  जवळीक न ठावे
ओलाव्याच्या शब्दावीना,चाले रे  ही कहाणी ....।।

चंद्र तारे क्षीण दिसे  मज,  आकाश  न ठेंगणे
सुरु  असेल ही जरी तरी ,  अर्धी अजून कहाणी ………. ।।

असते कहाणी रंजक ,   असे ज्यात राजा राणी
हा राजा राणी विना . , त्याची कसली कहाणी …।।

आभारी आहे मित्र तुझा  , वेळ तुझा मी घेतला
नवखा आहेस तू  गड्या,  नवखी तुज कहाणी ......।।

मीच म्हणालो राजाला      ,उदास का  रे होसी..?
कशी ही असो तुझी  ही  ,     मी  सांगेन ही कहाणी .....।।
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कविता - कहाणी ...।।
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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Monday, February 3, 2014

कविता- आहे का तुज खबर काही ?

कविता - आहे  का तुज खबर काही   ?
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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भेटून गेलीस काल सखे
घडून गेले मग खूप काही
काय झाले समजुनी घे तू
आहे का तुज खबर काही ?………!

म्हणतेस नेहमी मजला
हे  काय आह? आपल्यात रे  !
तूच विचार  मनास तुझ्या
आहे का त्यास  खबर काही ?……!

सूर जुळती मनांचे तेंव्हा
गीत हे  मन गाऊ लागते
स्वप्ने तरळती स्वप्नात
आहे का तुज खबर काही …?…।!

बरे आहे एक सखे तुझे
असतेस  तू तुझ्यात सदा
वेड लाविलेस अन मजला
आहे का तुज खबर काही …?…।!

आहे आता करणे इलाज
तुलाच या बिमारीवरी
गंभीर हा मामला आता
आहे का तुज खबर काही …?…।!
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कविता - आहे  का तुज खबर काही   ?
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Friday, January 17, 2014

कविता - पत्र

 कविता -पत्र-….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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ख्याली -खुशाली सांगते - पत्र
दोन मनाचा संवाद-सेतू - पत्र
आपलाच असे  संवाद ,  ते- पत्र
मनांतल्या  भावनानाचे रूप जणू पत्र …।
दूर असो कुणी किती ही
त्याला  जवळ आणते  पत्र
अस्फुट -अव्यक्त भावनां व्यक्त
करते  तुमचे आमचे एक पत्र ......।
नव्या जमान्यात असलो जरी आता
लिहिण्या साठी अजूनही खुणावते हे-पत्र
उतरवा मनातले प्रपात सारे
मन मोकळे कळेल हे एक पत्र …....।
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-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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