कविता - लोभसवाणे रूप तुझे …!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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सकाळच्या त्या निरागस प्रहरी
पाहतेस कोवळ्या ऊन्हाच्या छटा
मी मन भरुनी त्याच वेळी पाहतो
तुझ्या चेहेऱ्यावरच्या रेशीम बटा...!
हसणे लोभसवाणे शोभते छानसे
गोजिऱ्या गोड चेहेरयावरती तुझ्या
मिस्कीलता तरळते निर्मळशी
जी नजरेत नेहमी दिसते तुझ्या ।
रूपवती श्रीमंत खरी आहेस तू
मी चाहता तुझा एक गरीब खरा
मेहेरबानी असुदे जरासी तुझी
दुरुनी सही प्रेमाने लक्ष असूदे जरा …!
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कविता - लोभसवाणे रूप तुझे …!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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-अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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सकाळच्या त्या निरागस प्रहरी
पाहतेस कोवळ्या ऊन्हाच्या छटा
मी मन भरुनी त्याच वेळी पाहतो
तुझ्या चेहेऱ्यावरच्या रेशीम बटा...!
हसणे लोभसवाणे शोभते छानसे
गोजिऱ्या गोड चेहेरयावरती तुझ्या
मिस्कीलता तरळते निर्मळशी
जी नजरेत नेहमी दिसते तुझ्या ।
रूपवती श्रीमंत खरी आहेस तू
मी चाहता तुझा एक गरीब खरा
मेहेरबानी असुदे जरासी तुझी
दुरुनी सही प्रेमाने लक्ष असूदे जरा …!
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कविता - लोभसवाणे रूप तुझे …!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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