Wednesday, April 29, 2015

कविता - लोभसवाणे रूप तुझे ...!

कविता - लोभसवाणे रूप तुझे …!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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सकाळच्या त्या निरागस प्रहरी
पाहतेस  कोवळ्या ऊन्हाच्या छटा
मी मन भरुनी त्याच वेळी पाहतो 
तुझ्या चेहेऱ्यावरच्या रेशीम बटा...!

हसणे लोभसवाणे शोभते छानसे
गोजिऱ्या गोड चेहेरयावरती तुझ्या
मिस्कीलता तरळते निर्मळशी
 जी नजरेत नेहमी दिसते तुझ्या  ।

 रूपवती श्रीमंत खरी आहेस तू
मी चाहता तुझा एक गरीब खरा
 मेहेरबानी असुदे जरासी तुझी
दुरुनी सही प्रेमाने लक्ष असूदे जरा  …!
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कविता - लोभसवाणे रूप तुझे …!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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Friday, April 17, 2015

कविता - वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!

कविता - वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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काय माहौल इथला सांगू लोकहो
मेहफिल भरजरी ही सजली सारी
मुखवटे सुंदरसे दिसती चेहेरी
वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!

मनास विसरुनी जगती हे सारे
मृगजला पाठी धावणे यांचे सारे
अफाट धावूनी  थकती किती सारी
वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!

रिझवण्या गात्रास आपल्या येती येथे
कला  अवगत असते सर्वांना सारी
बेमालूम फसवणेही  जमते भारी
वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!
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कविता - वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Monday, April 6, 2015

कविता - वाटचाल ...! -अरुण वि.देशपांडे .

कविता - वाटचाल …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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प्रश्नांचे खड्डे ,समस्यांचे अडथळे
रस्ते नसती त्यात सरळ सगळे
चालणे चुकत नसते ते कुणाचे
बळ द्यावे आपण मना चालण्याचे ….!

काय कुणा मिळावे ? ते कधी मिळावे ?
या शंकेने मनास कधी न शिणवावे
प्रयत्नांती फळ नक्कीच ते मिळते
मनावर आपल्या पक्के ठसवावे ….!
अनुभवी जाणते असती सोबती
ऐकून घ्यावे सार्थ बोल सदा त्यांचे
हेच अनुभव दावी मार्ग सुलभ
ध्येयप्राप्तीच्या खडतर वाटचालीचे ….!
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कविता - वाटचाल …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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