Saturday, December 3, 2016



नमस्कार-मित्र हो-
तरुण-भारत -नागपूर-
आसमंत पुरवणीत प्रकाशित कविता.
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Wednesday, November 30, 2016

कविता- जय गजानन ..!

कविता -जय गजानना .|
-अरुण वि.देशपांडे .
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दर्शन तुमचे 
नित्यची घडावे
हीच हो कामना
जय गजानना ...!
अस्थिर मनास
लाभावी शांतता
असावी कृपा हो
जय गजानना ...!
जय गजानना
उच्चारता नाव
आनंद मनासी
होतो गजानना ...!
प्रहर सरावा
नित्यादिनाचा
स्मरणात तुमच्या
जय गजानना ...!
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कविता- जय गजानना ..!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Wednesday, November 23, 2016

52137 --ही आहे माझ्या लेखनाची वाचक संख्या -
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Author of the week- हा बहुमान प्राप्त.
आपणही जरूर माझे लेखन वाचावे .त्यासाठी लिंक -
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कथा -कविता -विनोदी कथा -बाल-कथा ,बाल-कविता या लिंकवर वाचा
वाचकमित्रांना खूप खूप धन्यवाद.

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Friday, November 4, 2016

प्रतिलिपी मराठी कथा उत्सव- कथा - पारख -अरुण वि.देशपांडे

नमस्कार वाचक मित्र हो-
आपल्या अभिप्रायार्थ -पारख "ही कथा ...
पुढील कथा वाचण्यास खालील लिंक क्लिक करा...
http://marathi.pratilipi.com/arun-v-deshpande/parakh
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Friday, October 28, 2016

कविता- अशी ही दिवाळी ...

कविता -
अशी ही दिवाळी 
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प्रकाशाचा उत्सव दिवाळी
उजळून जाई सारा परिसर 
नयनरम्य रोषणाई चोहीकडे 
लक्ष लक्ष दिव्यांची ही दिवाळी ...

दूरदेशी असती पाखरे ज्यांची 
साद घालिते त्यांना दिवाळी 
हिरमुसलेल्या घरांच्या अंगणात  
हास्याची खुलते रंगीत दिवाळी ...

मायेचे हात ते बनविती ती 
अवीट गोडीची ती मिठाई 
दिवाळीच्या भेटीसाठी आतुर 
असते घर-घरातील लेक-बाई ....

संस्कृती -परंपरेचा मिलाफ 
अनुभूती असते ही दिवाळी 
मना -मनास जवळ आणिते 
स्नेह-प्रकाशाची ही दिवाळी 
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कविता - अशी ही दिवाळी .
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Friday, October 21, 2016

कविता - झाले इतके तरीही ...!

कविता -
झाले इतके तरीही...
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चालत राहिली तसा , रस्तेच कळाले नाही  |
दिसले खूप जाताना , पायांना कळाले नाही  ||

विचारले लोकांना तरी,  त्यांनाही कळाले नाही  |
सांगितले त्यांनी जेजे , मलाच कळाले नाही    ||

अर्थ शोधला त्यातला , नेमके कळाले नाही   |
थांबावे की चालावे हे , मनास कळाले  नाही  ||

झाले इतके तरीही  , काहीच कळाले नाही  |
कशा साठी असे सारे  ,अजून कळाले नाही   ||
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कविता -
झाले इतके तरीही...
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Saturday, October 15, 2016



आज वाचनप्रेरणादिन- डॉ.एपीजे-अब्दुल कलाम यांचाजयंतीदिन- त्यानिमित्ताने-
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बालकविता-सलाम आजोबा-कलाम आजोबा..!
(आली आली परीराणी- संग्रहातून)

Monday, August 22, 2016

बालसाहित्य - बालकुमार कथा कोश- व बाल कविता कोश - दोन्ही खंडात माझ्या साहित्याचा समावेश .

नमस्कार-
एक गौरवशाली क्षण तुमच्या शभेच्छांच्या पाठबळावर-माझ्या वाट्याला आलाय
बालकुमार कथा कोश- गोष्टींचे घर (३ खंड)आणि बालकविता कोश-कवितांचा गाव (२ खंड)..
या दोन्ही खंडात माझ्या कथांचा आणि कवितांचा समावेश आहे.
डॉ.विजया वाड यांचे आभार.
मटा -२१-८-१६ संवाद पुरवणीत दखल घेतल्याबद्दल
साहित्यिक - एकनाथ आव्हाड सरांना धन्यवाद.

Wednesday, May 25, 2016

कविता- करू विनवणी गजानना .

कविता -करू विनवणी गजानना .
-अरुण वि.देशपांडे
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माथा ठेवूनी त्यांच्या चरणा
सांगूया मनातील कामना 
हरण कराव्या या यातना
करू विनवणी गजानना ..||
दर्शन घडावे तव रूपाचे
ओठी असावे नाम त्यांचे
विसर याचा मना कधी ना
करू विनवणी गजानना ...!!
टाळावे मार्ग वाईट जेजे
रस्ते असे ते आपले नव्हे
दूर ठेवाव्या साऱ्या वासना
करू विनवणी गजानना ..||
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कविता - करू विनवणी गजानना .||
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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बाल-कुमार कथा- आई तू काळजी करू नकोस.

प्रतिलीपी मराठी विभागप्रमुख सौ.वृषाली शिंदे
कथा प्रायोजीत केल्याबद्दल आभारी आहे.
वाचकहो आपले अभिप्राय जरूर द्यावेत.

आई तू काळजी करू नकोस
PRATILIPI.COM

Thursday, May 19, 2016

कविता - श्री सद्गुरू गजानना ..||

कविता -
श्री सद्गुरू गजानना
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श्री सद्गुरू गजानना 
प्रार्थना तुमच्या चरणा
लेकुरे आहोत तुमची
येऊ द्या तुम्हास करुणा ..||
शेगावात राहुनी तुम्ही
भक्तासी हो उद्धरिले
आम्ही सारे भक्त तुमचे
येऊ द्या तुम्हास करुणा ||
मनुष्य म्हणुनी जन्मला
नका विसरू माणुसकीला
विसर ना पडो कधी याचा
येऊ द्या तुम्हास करुणा .. ||
श्री सद्गुरू गजानना
प्रार्थना तुमच्या चरणा ...||
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कविता -
श्री सद्गुरू गजानना .
-अरुण वि.देशपांडे
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Wednesday, May 11, 2016

कविता - जय गजानन नाम घ्यावे ...!

कविता - जय गजानन नाम घ्यावे ...!
-अरुण वि.देशपांडे
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शरण तुम्हासी गुरुराया
तुम्हीच आता त्राते आमुचे 
घाली साकडे आज तुम्हाला
तुम्ही रक्षणकर्ते आमुचे ....!
गण गण गणात बोते
उच्चारिता मन आनंदिते
थकले भागले मन माझे
दर्शन होता संतोष पावते ...!
जय गजानन नाम घ्यावे
ओठी सदा हो हेच असावे
या विना गुरुराया आता
आणिक काय ते मागावे ...!
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कविता - जय गजानन नाम घ्यावे ...!
-अरुण वि.देशपांडे
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Saturday, May 7, 2016

आज "मदर्स डे"- मातृ-दिन "-निमित्ताने - कविता "आई तिचे नाव ...! -अरुण वि.देशपांडे

आज "मदर्स डे"- मातृ-दिन "-निमित्ताने -
कविता "आई तिचे नाव ...!
-अरुण वि.देशपांडे
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मन गाभाऱ्यात
हृदय मंदिर
आत वात्सल्यमूर्ती
आई तिचे नाव ...!
तिन्ही त्रिकाळी इथे
उन्हाचे नाही नाव
स्नेह सावली देई
आई तिचे नाव ..!
भेटीसाठी तिच्या
मन -पाखराची धाव
घरट्यात वाट पाहे
आई तिचे नाव ...!
घडविते तीच
बनविते तीच
शिल्पकार थोर
आई तिचे नाव ...!
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आज "मदर्स डे"- मातृ-दिन "-निमित्ताने -
कविता "आई तिचे नाव ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Wednesday, April 27, 2016

कविता- गण गण गणात बोते..!

कविता - गण गण गणात बोते
-अरुण वि.देशपांडे
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जपनाम गोड ओठी येते
गण गण गणात बोते..!!
या नामाची लागता गोडी
भक्तीचे भरते मनात येते
स्मरण स्वामींचे करू,म्हणू
- गण गण गणात बोते....||
भक्तांचे करण्यासी रक्षण
शेगावी प्रकटले हो स्वामी
भावभक्तीने भक्त म्हणती
स्वामी करा आमचे रक्षण ...||
अस्वच मन निर्मल होई
अस्थिर मन हे होई स्थिर
शांती मना मिळते म्हणता
गण गण गणात बोते....||
हात जोडूनी ध्यान करावे
डोळे भरुनी दर्शन घेता
जपनाम गोड ओठी येते
गण गण गणात बोते..!!
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कविता - गण गण गणात बोते
-अरुण वि.देशपांडे
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Friday, April 22, 2016

जागतिक -पुस्तक दिनानिमित्त - कविता - पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!

जागतिक -पुस्तक दिनानिमित्त -
कविता -
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
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ग्रंथांच्या थोरवीची महती 
संत -थोर विभूती सांगती
घडे सदाच सत्संगती ती
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
जिज्ञासा ,कुतूहल-पूर्ती कोडे
असो ही कितीही अवगढ
वाटू लागेल ते सोपे थोडे
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
मनाच्या अंगणात पडतो
ज्ञानाचा निर्मळसा प्रकाश
पाला पाचोळा कचरा जातो
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने
सिमेंटच्या जंगलात माणसं
चार भिंतीत ती मित्राविना
कमी होईल सारी वेदना
पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
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कविता -पुस्तक -मित्राच्या सोबतीने ..!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
मो-९८५०१७७३४२
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Saturday, April 16, 2016

pratilipi.com marathi पत्र लेखन स्पर्धा - माझा लेखन सहभाग - नव्या पिढीच्या मित्रास.


खालील लिंक क्लिक करून..पत्र वाचावे व Likes & Comments
नचुकता द्यावेत. तुमच्याप्रतिसाद संख्येवर निकाल ठरणार आहे.
तरी माझ्या पत्र लेखनास आपले अभिप्राय नोंदवावेत.
पत्रशीर्षक- नव्या पिढीच्या मित्रास..!
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http://marathi.gamma.pratilipi.com/a…/navya-pidhichya-mitras-
नव्या पिढीच्या मित्रास
PRATILIPI.COM

Saturday, April 9, 2016

कविता - तसेच राहिले ..!

कविता -  तसेच राहिले ..!
-अरुण वि.देशपांडे
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अंतर समोरा समोरचे  खूप जवळचे ते वाटले
नडला फाजील विस्वास  अंतर तसेच  ते राहिले ...।।

आरसे होते समोर खुपसे  धुळीचे थर खूप साठलेले
आता साफ करायचे कुणी ? ते तसेच धूळ खात  राहिले  ...।।

दिला नाही आधार कुणी सावरणे तेच नाही जमले
मूडपलेले हात घडीचे ते   हात तसेच ते राहिले  ..  ।।

ढासळून गेलेत ढिगारे  विझले नाहीत निखारे
धूर कोंडला घरात  दरवाजे बंद तसेच राहिले ..  ।।
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कविता - तसेच राहिले  !
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
मो-९८५०१७७३४२
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Friday, April 1, 2016

कविता - गोष्ट आहे हीच खरी .

कविता - गोष्ट आहे हीच खरी .
-अरुण वि.देशपांडे 
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घुटमळती पावले  अजुनी त्या वळणावरी
जायचे पुढती मागचे टाकुनी मागे जरी      .||

भास होते ते सारेच मनास ते जे जे वाटले 
 व्रण जखमांचे आत ताजे वरुनी कोरडे जरी ..||

का असे वागती माणसे जी आपलीच वाटली 
होती नाती आपल्यातली ती खोटी की खरी ?..||

हात दिलेत ते  साथ सोबत करण्यासाठी 
का हात हे अचानक जीवाचा असा घात करी ..||

निसरड्या रस्त्याची वाट मोह याचाच होई 
बिकट पायवाट आजकाल जो तो टाळतो खरी  ||

दिपवणारे प्रकाशझोत सतत जे डोळ्यावरी 
पाहावे नेमके काय काय मनास पडे भ्रांत खरी ...||

असेच आहे वर्तमान सांप्रत ,जगणे हतबल 
माना  अथवा न माना  ,गोष्ट आहे हीच खरी ....||
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-कविता - गोष्ट आहे हीच खरी ..
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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Monday, March 28, 2016

Friday, March 25, 2016

कविता- तुला भेटण्याआधी .

कविता- तुला भेटण्याच्या आधी
-अरुण वि.देशपांडे 
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एकटाच मी माझा होतो नव्हते माझे कुणीही 
होती गोष्ट फार साधी, तुला भेटण्याच्या आधी ..||

बरे होते एका दृष्टीने तसे आजवरचे हे जिणे
बेफिकीर -मस्त फिरस्ती मी , तुला  भेटण्याच्या आधी ...||

लाविता तू  दीप आशेचा उजळून गेला मन गाभारा 
तसा ठोस अंधारच होता इथे, तुला भेटण्याच्या आधी 

काय पाहिले तू माझ्यात, जे मला न जाणवले कधी 
अनोळखी किती मीच मला, तुला  भेटण्याच्या आधी ..||

माहिती नव्हते असते काय ते प्रेम, अन ती प्रीती ?
अवगड होते कोडे हे गोड,  तुला भेटण्याच्या आधी ..||
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कविता- तुला भेटण्याच्या आधी .
-अरुण वि.देशपांडे .
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Monday, March 21, 2016

कविता - कविते तू भेटण्याआधी ..! -अरुण वि.देशपांडे .

आज जागतिक कविता दिन..!त्या निमित्ताने .
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आज जागतिक कविता दिन -
त्यानिमित्ताने ..!
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कविता - कविते तू भेटण्याआधी ..!
-अरुण वि.देशपांडे 
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तू भेटण्याआधी
हे कविते ,मी कधी 
एक ओळही ती साधी 
 नव्हती लिहिली कधी  ..!

तू भेटण्याआधी तशी 
कवींच्या कवितेतून 
भेटत होतीस कधी कधी  
 फक्त थेट भेट नव्हती कधी ...!

चंद्र -चांदण्या, आकाश 
नुसते पाहिले होते आधी 
मना दिसले नव्हते कधी 
कविते तू भेटण्याआधी ...!


वरवरचे रूप तुझे वेगळे 
अंतरंगी असे  न्यारीच तू 
जाणवले नव्हते हे कधी 
कविते तू  भेटण्याआधी ...!
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कविता - कविते तू भेटण्याआधी ..!
-अरुण वि.देशपांडे 
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Saturday, March 19, 2016

कविता - जमत गेले मला ..! -अरुण वि देशपांडे

कविता - जमत गेले मला ..!
-अरुण वि देशपांडे 
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का आणि कसे ? शोधात निघता 
 शोधणेही जमत गेले मला ...!

 डोक्यात उजेड पडत गेला 
 जगणेही  जमत गेले मला 

उत श्रीमंतीचा पाहुनी नित्य 
 सावरणे जमत गेले मला  

रंगी-बेरंगी दुनिये पासून 
दूर होणे  जमत गेले मला 

नशिबी  असावे लागते सारे 
समजणे जमत गेले मला ...!

असूया , मत्सर नाही कामाचे 
स्वीकारणे जमत गेले मला ..!
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कविता - जमत गेले मला ..!
-अरुण वि देशपांडे 
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Tuesday, March 15, 2016

बाल-कुमार कथा- आजीची छान युक्ती

प्रतिलिपी.कॉम ने दिलेल्या या लिंकला क्लिक करावे.
आजी-आजोबांनी ही गोष्ट बाल-मित्रांना जरूर वाचून दाखवावी..
बाल-कुमार कथा- आजीची छान युक्ती
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http://www.pratilipi.com/arun-v-deshpande/aajichi-yukti

Monday, March 7, 2016

कविता - महिला दिनाच्या निमित्ताने ..!

कविता - महिला दिन निमित्ताने  ..!
-अरुण वि.देशपांडे 
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स्व-कर्तुत्वाची लखलखीत ठसा 
हर एक क्षेत्रात तिने नोंदवला 
करू या कौतुक तिचेच आजला 
महिला दिनाच्या निमित्ताने ...!

एरव्ही असतोच शब्द-संकोच 
मन नसे मनमोकळे तेव्हढे 
अशोभनीय हे वागणे, सांगावे लागते 
महिला दिनाच्या निमित्ताने ...!

गुणगान करावे ,सलाम करावे 
स्त्री-च्या अफाट कार्यक्षमतेला 
का द्यावे लागती पुरावे -दाखले ?
महिला दिनाच्या निमित्ताने ..!

स्त्री -रूपांचे दर्शन तसे तर 
रोज सर्वांना घडत असते 
डोळ्यांनी फक्त पाहिले जाते
महिला  दिनाच्या निमित्ताने ..!
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अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
मो-९८५०१७७३४२ 
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कविता - सांगू सखे काय तुजला........!

एक जुनीच कविता -नव्या मित्रांसाठी -
कविता - सांगू सखे काय तुजला........!
-अरुण वि. देशपांडे
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सांगू सखे काय तुजला मी
हाल माझ्या मनाचे ते कसे ?
नजरेत  नजर मिसळूदे तुझी
कळेल ,तुज  माझे मन ते कसे ....!

स्वप्नात  असतेस तू , अन
सत्यातही मी  पाहतो तुजला
अस्तित्व तुझे, तेव्हढेच जग माझे
हे  एवढेच  आहे ठावे मजला .......!

ओंजळीत आलो घेउनी मी
उमलत्या फुलांचा गजरा
दिसतेस किती सुंदर तू
 खुले तुजला रंग निळा साजरा ....!

म्हणतेस सदाच तू मला
होतसे काय अशा  पाहण्याने ?
जीवन लाभे नवे  मज दरवेळी
सखे , तुझ्या अशा एका पाहण्याने .......!
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कविता - सांगू सखे  काय तुजला ..!
 -अरुण वि .देशपांडे -पुणे.  
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Thursday, March 3, 2016

बुक हंगामा - नुक्कड -कथा उपक्रमाततील माझी कथा- इच्छापत्र ..!

रसिक वाचक हो ,
बुक हंगामा -नुक्कड-कथा उपक्रमात ०९ फेब्रुवारी-२०१६ ला  प्रकशित
माझी कथा "इच्छापत्र " जरूर वाचावी.
त्या साठी काह्लील लिंक वर क्लिक करावे  ही विनंती.
स्नेहांकित -
अरुण वि.देशपांडे
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कथा- इच्छापत्र
अरुण वि.देशपांडे
http://www.bookhungama.com/index.php/blog/2016/02/09/%E0%A4%87%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A3-%E0%A4%B5%E0%A4%BF-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82/

Wednesday, March 2, 2016

काही हायकू रचना - 2


एक हायकू 
----------------
१३.
करू प्रवास
घडेल सहवास
निसर्गाचा हो
--------------------
१४.-

भान हरवे
वैभव हे हिरवे
दृष्टी पडता
-------------------------------
१५

ओरबाडणे
संपन्न निसर्गाला
नाही थाबले
---------------------------
१६
------------------
निरागसता
पावलो पावली
या निसर्गात
-----------------------------
१७

सोबती सारे
ओळखीचेच तरी
परकेच ते
--------------------------
१८.
पाखरांसाठी
झाडे ही डेरेदार
छानसे घर
-----------------------------------------
१९.
अपेक्षाभंग
दु:खाचेच तरंग
पाण्यावरती
-------------------------
२०.
----------------------------------
२१
मुक्त हाताने
मोकळ्या मनाने ते
देतो निसर्ग
----------------------------------
२२.

--------------------------------
बेगडी प्रेम
आहे या माणसांचे
निसर्गावरी
----------------------------------------
२३.

मळभ नको
नको काळी किनार
मनआकाशी
-----------------------------------------
२४
चंद्र आकाशी
सोबतीस तारका
शितलचांदणे
-------------------------------

Tuesday, March 1, 2016

काही हायकू रचना ..!

रसिक वाचक हो- आपण नेहमी माझ्या कविता व चारोळ्या वाचत आहात.
या वेळी  थोडा वेगळा प्रकार सादर करतो आहे. जपानी काव्य प्रकार आहे हा -
जो "हायकू "या नावाने लोकप्रिय आहे.
माझ्या काही रचना आपल्या साठी.
अभिप्राय जरूर द्यावेत.
स्नेहांकित-
अरुण वि.देशपांडे
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०१ एक हायकू -
-----------------------------
हल्लकल्लोळ
अवेळी पावसाचा 
राडारोड्याचा 
---------------------------------

२,
एक हायकू -
----------------------------------
असा रक्षक 
नसावे हो भक्षक
पर्यावरणाचे .
---------------------------------------

३,
एक हायकू-
पंढरपूर
भक्तीचा महापूर
विठूचरणी.
---------------------------------
४-
एक हायकू -
-----------------------------
किलबिलाट 
अन चिवचिवाट
गाणे अवीट 
----------------------------------------
५-
हायकू-
----------------------
नदीच्या काठी
पाण्यावर तरंग
सुर्यास्त रंग 
-----------------------------

६-
हायकू -
-------------------
सरिता वाहे 
अनावर ओढीने 
सागराकडे 
----------------------

७-
अशांत मन 
निसर्ग एकांतात 
होईल शांत 
------------------------------------------
८-
आकाशतारे
दिपावलीचे दिवे
प्रकाशथवे
-------------------------------
९-
हायकू --
अफाट रूप 
निसर्गाचे पहावे 
मन हरवे 
-------------------------------------
१० -
--हायकू
रात्र सरते
गगन उजळते
रवी प्रकाशे
-------------------------------
११.
हायकू
----------------------
निसर्ग घर
त्यास हो घरघर
माणसामुळे....!
-----------------------------
-अरूण वि.देशपांडे- पुणे.
मो-९८५०१७७३४२

Tuesday, February 9, 2016

कविता - हे किती खास आहे ...!

कविता - हे  किती खास आहे …!
-अरुण वि .देशपांडे
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पुढे पुढे करण्याचा सोस आहे
काही न करता  सारे जमावे
नेहमीच असा जोश  आहे
हे किती खास आहे  ।।

खुशमस्करे  घोंगावती जिथे
मिसळूनी बेमालूम त्यात जावे
न जाणवावे कुणा कधी
हे किती खास आहे ।।

तत्वाशी बांधिलकी  असावी "?
 खुळेपणाचे  लक्षण की आहे
काही न करता सारे ओंरपावे
हे किती खास आहे  ।।

मेहनत , कष्ट ,पराकाष्ठा
करण्यास कुणा हो वेळ आहे
जमवता येतो मेळ  सारा
हे किती खास आहे   ।।

कसे असावे , कसे करावे ?
हा प्रश्न ज्याचा त्याचा आहे
पुसण्यास कुणी नसे रिकामा
हे किती खास आहे  ।।
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कविता - हे किती  खास आहे ।!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे
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Saturday, February 6, 2016

कविता - ते पुन्हा आठवले ..!

कविता - ते पुन्हा आठवले ...!
-अरुण वि.देशपांडे .
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कोरड्या ठप्प नदीच्या काठी बसता 
खेळकर रूप तिचे  ते आठवले  ||

हीच नदी  हाच  तिचा तो किनारा 
पाण्यातले पाय , स्पर्श ते आठवले ||

वाळूत नावांची ती नक्षीदार कोरणी 
तुझे स्मित चांदणे तेही आठवले  || 

कविता मन चिंब चिंब करणार्या 
भारलेले शब्द ते पुन्हा आठवले  || 

जादूचे क्षणते - दिवसही तसेच ते 
मोरपीस  मन तळातले  ,ते आठवले  ||

आयुष्य झाले आजचे कोरडे जगणे 
अजुनी आठवणी ओल्या ,हे आठवले   ||
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कविता - ते पुन्हा आठवले ...!
-अरुण वि.देशपांडे .-पुणे .
मो- ९८५०१७७३४२ 
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Thursday, February 4, 2016

प्रतिलिपी डोट कॉम वर प्रकाशित नवी विनोदी कथा - जोडी झिंदाबाद

रसिक मित्र हो
प्रतिलिपी डॉट  कॉम वर प्रकाशित माझी नवी विनोदी कथा "जोडी झिंदाबाद "
वाचण्यासाठी खालील लिंक क्लिक करावी .व अभिप्राय द्यावेत.
१. http://www.pratilipi.com/arun-v-deshpande/jodi-zidabaad

विनोदी कथा - गजाभाऊचा नाराजीनामा

कथा -
गजाभाउंचा  नाराजी-नामा "
ले- अरुण वि.देशपांडे
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माझे परम मित्र - गजाभाऊ नुकतेच सेवानिवृत्त झाले .मोकळा वेळ हाताशी असल्यामुळे " आता मी काय काय करू गड्या ? " अशा गोंधळात ते सापडले आहेत . वास्तविक गोष्ट अशी आहे की - हे महोदय  यापुढे आता दिवसभर  घरातच असणार आहेत " या कल्पनेने  मिसेस -गजाभाऊ  आणि कुटुंबीय हबकून गेले आहेत.

वाहिनी मला म्हणाल्या सुद्धा - भाऊसाहेब - आता तुमचे मित्र रिटायर्ड झालेत , पण, घरात त्यांनी सोडलेल्या आर्डरी  ऐकून आम्ही टायर्ड होणार " याचे तुम्हाला काहीच वाटत नाही का हो ?
वाहिनीचा प्रश्न अगदी रास्त असाच होता - कारण माझा समावेश गजाभाऊच्या  "निकटच्या सूत्रात " असायचा . त्यामुळे "गजाभाऊ ही असामी कशी आणि किती बिकट आहे" महे माझ्या इतके कुणालाच माहिती असणे शक्य नव्हते

त्यामुळे "निकटच्या सूत्रातील माणसाने नाटकीय ढंगात  माहिती दिली पाहिजे " एवढी माफक माहिती मला होती.
वाहिनीना धीर देत मी म्हणालो - काळजी करू नका वाहिनी, गजाभाऊ घरात लुडबुड करतात  हे खरे आहे , आता यापुढे तुम्हाला त्यांच्या नको इतक्या बारीक नजरेचा " त्रास होणार आहे. तेव्न्हा यापुढे तुम्हीच तुमचा एक्शन-प्लान" बदलणे गरजेचा आहे.
त्यासाठी गजाभाऊ च्या नकळत  आपण इतर सगळ्यांच्या सहभागाचे "चिंतन -शिबीर " आयोजित करू या .गजाभाऊ ला आपल्या पेक्षा नवी जनरेशन  जास्त चांगल्या प्रकारे मेनेज करू शकेल असे मला वाटते आहे.
माझे ऐकून घेत वाहिनी मला म्हणाल्या - भाऊसाहेब , गजाभाऊ काय "चीज " आहे, ही तुमच्या पेक्षा जास्त मला माहिती आहे. तुम्ही असाल त्यांचे "जानी दोस्त ", मी प्रत्याक्ष्य  त्यांची बायको आहे ."मला जास्त कळत ? की तुम्हाला ?
मी मनापासून म्हणालो - अर्थातच तुम्हाला जास्त माहिती आहे वाहिनी.
 वाहिनी आपले बोलणे  चालूच ठेवीत म्हणाल्या - आमचे हे ", आत्तापर्यंत आफिसात गुण्यागोविंदाने नांदत होते , घरापेक्षा इथे त्यांना जास्त आनंद मिळत असे. " या पुढे माझीच कठीण-परीक्षा आही. घरात आमच्या सोबत हे कसे नांदतात ? कल्पनेनेच नुसता घोर लागलाय बाई माझ्या जीवाला ."

वहिनींना धीर देणे आवश्यक आहे हे जाणवून मी म्हणलो-
वाहिनी - अहो , हे घरगुती राज्य तुमचेच आहे . बिनपगारी असलात तरी -फुल अधिकारी तुम्हीच आहात घरतल्या.
तुम्ही मन भक्कम करा तुमचे .
माझे बोलणे मध्येच थांबवीत  वाहिनी म्हणाल्या -
भाऊसाहेब -  का उगीच फिरकी  घेताय ?, आमच्या मनाचे काही करण्याची हिम्मत आहे का आमच्यात ?,
तुमच्या दोस्ताचे लक्ष आफिसात जितके जास्त होते , त्यापेक्षा दुप्पट लक्ष घरात असे . त्यांचे मन घरातच  भिरीभिरी फिरते आहे असे भास आम्हाला होतात .
आम्हाला शिस्त लावण्याचे त्यांचे प्रयत्न " तुम्हाला माहितीच आहे, नवे काय सांगावे तुम्हाला .
त्यांच्या सोबत कायम असणारे तुम्ही - आठवा जरा - गजाभाऊनी  आफिसातला  फोन - तिथल्या कामा पेक्षा , घरी आमच्या चवकशी साठी जास्त वापरलाय , खर की नाही ?

वहिनींची फायरिंग अचूक होती -  एरव्ही आमच्या या वाहिनी "मित-भाषी  आहेत .फारसे न बोलणाऱ्या "वाहिनी  "आणि नको तितके बोलणारे गजाभाऊ ..!", हे मी पाहिलेले नेहमीचे दृश्य ,
 पण,आज वाहिनीचा हा  आवेश पाहून " त्यांच्याकडे ऐनवेळी टाकण्या साठी "बॉम्ब-गोळे " आहेत ,याची झलक पाहून मला तर बेस्ट वाटले. मी म्हणालो-

अरे वा - वाहिनी - तुमची तर जय्यत तयारी आहे "पलटवार करण्याची ",गजाभाऊचे काही खरे नाही आता.
वहिनींच्या चेहेर्यावर छानसे स्मित उमटले  .

वहिनीसाहेब - मानलं बुवा तुम्हाला . गजाभाऊचा बंदोबस्त -करण्याच्या कार्यात माझे पूर्ण सहकार्य असेल . यासाठी माझी एक अट आहे - गरीबाची रसद तोडू नका .
वाहिनी लगेच समजल्या - काळजी करू नका भाऊसाहेब . घ्या गरमागरम चकल्या - आत्ताच करून ठेवल्यात .गजाभाऊ आणि तुम्हाला आवडतात , म्हणून आठवणीने केल्यात .
क्या बात है वाहिनी- तुमच्या प्रेमळ स्वभावास खरेच तोड नाही, चकल्या बेस्टच झाल्या आहेत" हे सांगण्यास विसरलो नाही.

 अहो वाहिनी -इतका वेळ झालाय मला येऊन- आणि गजाभाऊ आहेत कुठे ? माझ्या प्रश्नाचा खुलासा करण्यासाठी वाहिनी म्हणाल्या -
अहो, सकाळी उठल्यावर ते  मला म्हणाले - जरा गावाकडे जाऊन येतोय , संध्याकाळ पर्यंत येईल वापस . तोपर्यंत
काही करून ठेवा छानसं खमंग काहीतरी..आमची गिरणी " चालू राहायला पाहिजे . कळाले ना ?"
" आमच्या ह्यांच्या बोलण्याच्या टोन मध्ये "विनंती" चा स्वर नसतो ,असते फक्त ऑर्डर , जी आम्ही पाळायची .

वाहिनीच्या बोलण्यात काही चूक नव्हते . गजाभाऊ आज गावाकडे गेले , तिथे गेल्यावर .वावटळ "आल्या सारखेच वाटत असेल सर्वांना , नुसता धुराळा उडवत असतील गजाभाऊ आपल्या बोलण्याने ."गजाभाऊ कधी कुणावर खुश झाले आहेत ", असे कधीच होत नसे. करणार्याने किती जीव तोडून काम केले तरी. त्या कामात गजाभाऊ काही तरी चुका काढणारच ." यामुळे समोरचा म्हणयचा - "शेळी जाते जीवानिशी आणि खाणारा म्हणतो...!"

आफिसात "साहेब असणारी व्यक्ती  -आपल्या साठी महत्वाची असणे सहाजिकच आहे. "साहेबास खुश ठेवण्यासाठी अंगात उपजत कौशल्य" असणारी माणसं आपल्या भवताली असतात. आमच्या आफिसात याच्या बरोब्बर  उलटे  चित्र होते. "गजाभाऊ नाराज होऊ नये म्हणून  आमचे "बिचारे साहेब ".अथक परिश्रम घेत असत.
कारण एकच - सर्वांच्या पगाराची कामं ", मंथली रिपोर्ट्स , मोठ्या कस्टमर-लोकांची मर्जी सांभाळायची ", अशा अनेक कठीण आणि कसरतीचे कामात  गजाभाऊ एकदम तरबेज -.सराईत  आणि सफाईदार "श्रेणीतले कुशल कारागीर- कर्मचारी --म्हणून लौकिकास प्राप्त झालेले .यामुळे गजाभाऊ कायम डिमांड मध्ये असणारी असामी होती .
 मंथ -एंड ला " गजाभाऊ आफिसात असणे म्हणजे -साहेबांचे बीपी नॉर्मल राहण्याची ग्यारंटी समजावी. गजाभाऊच्या तोंडून -र- रजेचा " शब्द आला तरी  साहेबांना हूड-हुडी भरायची . याचा फायदा गजाभाऊ चलाखीने घेत असत . एकूणच काय तर- "साहेबाचा जीव गजाभाऊत आणि गजाभाऊ दुसऱ्या कशात ..!
त्यामुळे - एखाद्याचा राजीनामा परवडला , पण- गजाभाऊचा "नाराजी -नामा "? नो वे ..!

डायरेक्ट साहेबच खिशात म्हटल्यावर - गजाभाऊ जरा शेफारून  गेले होते .मोठ्या नंबरच्या चष्म्यातून -बारीक-बारीक चुका शोधणारी त्यांची नजर .आणि  सोबतीला "फटाकडी -जीभ" ,या दोन अस्त्रा मुळे अनेक रथी-महारथी ", धारातीर्थी पडायचे .एकूण जबरदस्त असा "भीतीयुक्त -आदर "असणारे गजाभाऊ आफिसात मोठ्या आनंदाने दिवस घालवत असत.
इकडे घरातली माणसं  मात्र कायम टेन्शन मध्ये असायची ..स्वयंपाक काय करायचा ?, काय केले तर गजाभाऊ नावं न ठेवता खातील ? घरातील वावर सुद्धा गजाभाऊच्या  समोर मोकळेपणाने न होता "भेदरलेल्या चेहेर्याने होत असायचा ". त्यांच्या या अवस्थेला आपणच जबाबदार आहोत " ,हे असे वागणे चुकीचे असते ", असे विचार गजाभाऊच्या मनात कधीही येत नसत .

गजाभाऊच्या स्वतहा बद्दलच्या अफाट गैरसमजुती होत्या आणि त्या ठाम स्वरूपाच्या होत्या ", त्यामुळे  हे गैरसमज कधी दूर होण्याशी अंधुकशी  सुद्धा शंका नव्हती .
"या गैरसमजामुळे - पृथ्वी -तलावर आपला अवतार हा "बे-शिस्त लोकांना सुधारण्यासाठीच झालेला आहे ", यावरती गजाभाऊची श्रद्धा होती ",त्यामुळे "कोणाला काही वाटो-कामात जो टंगळमंगळ करेल -त्याला मी सुधारल्या शिवाय रहाणार नाही " असे म्हणत ते ज्याला -त्याला  म्हणायचे - ओ -,समजले का ? चला कामाला लागा..

हे वाक्य बोलतांना गजाभाऊची मान नेहमी वर असायची , आणि समोरचा माणूस त्यांची  दटावणी  खालच्या मानेने एकून घेत असायचा . मी तर त्यांचा जवळचा दोस्त. पण, यातून माझी देखील सुटका नसे. सर्वांच्या देखत मुकाटपणे त्यांच्या नाराजीचे फटके "मला सहन करावे लागतात . माझे दुर्दैव आणि गजाभाऊचे सुदैव " या दोन गोष्टीवर असूनही  आमची  महा -युती अभंग राहिलेली आहे .

माझ्या अंगात एक खोडी आहे - मला केव्न्हाही , कुठेही गाढ झोप लागण्याचे जणू वरदान प्राप्त आहे.कधी भरपेट भोजन झाल्यामुळे तर कधी उपवासाच्या ग्लानिमुळे  डोळे मिटल्या सारखे होते ,पण, ती असते गाढ झोपच .
आणि गजाभाऊ कायम निद्रानाश" झालेले पेशंट . चोवीसतास चालू असणाऱ्या  ए टीएम -मशीन सारखे गजाभाऊ नेहमी टक्क जागे आहेत असे वाटायचे .. असा अवस्थेच्या गजाभाऊच्या डोळ्यात माझी लाडकी झोप ", खुपत असायची. डाफरत म्हणायचे - "ओ -भाऊसाहेब , काय हे सदा न कदा डोळे गप्प मिटून काय पडून असता हो तुम्ही ? जरा जागे रहात जा..उठा बरं .जागते राहो ...! जरा स्वतःची काळजी करणे कमी करून -भवतालच्या जगाची काळजी कधी करणार तुम्ही ? कठीणच आहे तुमचं भाऊसाहेब .

शांतपणे मी म्हणायचो - काळजी आणि जगाची ? " नको रे बाबा , कुणी सांगितलाय   सुखातला  जीव -संकटात  का टाकायचा  ? ". अशावेळी एक तुच्छतेचा कटाक्ष माझ्याकडे फेकत गजाभाऊ दुसर्या कुणाला तरी सुधारण्याच्या कामात लक्ष द्यायला निघून जात .

अनेकदा मी अशा जागी बसायचो की - गजाभाऊच्या  रडारच्या रेंज मध्य येत नसायचो ,मग, अशा वेळेत माझी एक नैप ( आफिसातली मान्यता प्राप्त डुलकी -प्रकार ) झकास होऊन जायची.

आता स्पष्ट  शब्दात  सांगायचं म्हणजे -
आमचे गजाभाऊ निर्मल मनाचे आहेत . स्वच्छ आणि निर्मल आचार -विचार , कुणाचे भले व्हावे हा निर्मल हेतू ",
हे  मला माहिती असून काय उपयोग ? समोरच्याला काय कल्पना असणार हो ? यापेक्षा गंभीर बाब म्हणजे - माणसाला  आपण चांगलेच आहोत ", याचा अहंकार वाटायला लागतो , तो दिवसे-दिवस वाढायला लागतो .तेव्न्हा याचे परिणाम चांगले होण्या ऐवजी वाईट होऊ लागतात .
"
गजाभाऊच्या बाबतीत नेमके हेच होऊन बसलेले .पण समजून घेतील ते गजाभाऊ कसले ?
इतके दिवस म्हणा -वर्ष म्हणा -निभावल, योग्य वेळी गजाभाऊ रिटायर झाले .याचे त्यांना जितके वाईट वाटत होते , त्याचा दुप्पट आनंद आफिसातल्या लोकांना झाला आहे " स्वतहा गजाभाऊला याची जाणीव होत होती .
"उद्या पासून गजाभाऊचा "सुधरा रे जरा, काम करा रे ..१ असा दणका नसणार .त्यामुळी पब्लिक खुश आणि साहेब मात्र लहानसा चेहेरा करून बसले होते . महिना अखेर " कशी व्हावी ?ही चिंता त्यांची बीपी वाढवत होती.

आता येणार्या दिवसात गजाभाऊचा मुकाबला खुद्द घरातली पाब्लीक्षी होणार होता. ऊठ-सुठ  हाड हूड शब्दात कमेंट  करण्याची त्यांची आफिसातली सवय घरातील लोकांना नकोशी वाटू लागली.
वाहिनीची अवस्था फार कोंडीत  सापडल्या सारखी झाली होती. वहिनींच्या माहेरच्या लोकांपेक्षा -त्यांच्या सासरच्या लोकांनी दिलेल्या आहेरांनी वाहिनी हैराण होऊन गेल्या होत्या. "सुनबाई - हा गजाभाऊ आफिसात होता तेच दिवस तुझ्यासाठी बरे होते म्हणायचे ..!, ह्यो बुवा आता घरातच असणार म्हणजे ..कठीणच ग बाई.- याला सांभाळणे .
तूच सुधार आता स्वतहाला ,तरच काही निभाव लागेल तुझा .नाही तर काही खर नाही तुझं.

अशा कठीण परिस्थितीतून  मार्ग काढण्या साठी वाहिनिसाहेबांनी  "अर्जंट बोलायचे आहे, येऊन जावे ", असा सांगावा धाडला .संध्याकाळच्या आत आमची मिटिंग होणे गरजेचे होते. एकदा का संध्याकाळी गजाभाऊ गावाकडून परतले की काही होणार नाही. मधला हा टाईम-वाहिनीसाठी  बहुमोल असाच होता.

पाण्याचा ग्लास माझ्या समोर ठेवीत -वहिनीनी स्वागत करीत म्हटले. "भाऊसाहेब - आम्ही कितीही मनापासून केलं तरी आमचा  माणूस नाखूष  असतो, नाराजीने बोलणार " हे आम्ही का सहन करावं ? सांगा बर तुम्हीच .
हे ऐकून मी पण विचारात पडलो- "मामला सिरीयस झालेला होता. मी म्हणालो - हे बघा , आता काही केल तरी आपले गजाभाऊ त्यांचा पक्ष सोडणार नाहीत . मग, घाबरता काय एव्हढ ?
होऊ द्या नाराज , तुम्ही त्यांच्याकडे चक्क दुर्लक्ष करण्याचे सुरु ठेवा ..बसु द्या बोंबलत ..!
माझ्या सांगण्यावर वहिनींचा विस्वास बसत नव्हता - काय हे भाऊसाहेब ?, काही ही  हां हे ..!

अहो वाहिनी खरे तेच सांगतोय ..मी माझा सल्ला देणे चालू ठेवीत म्हणालो - हे पहा वाहिनी - या पुढे तुम्ही सुद्धा  ऊठ-सुठ नाराज होऊन बसायचे शिका .समजणार नाही अशा भाषेत ती व्यक्त करा ,तोडीस -बिनतोड जवाब द्या .
तुमचे वागणे -बोलणे पाहून "तुम्ही सुटकेस भरून माहेरी जाण्याच्या तयारीत आहात " असे गजाभाऊला सतत वाटले पाहिजे . "नाराजी -नामा " खिशात ठेवणाऱ्या गजाभाऊ ला  तुमच्या मनातली नाराजी कळू द्या .
तुमचे आणि घरातल्या माणसांचे महत्व , त्यांच्या कष्टांचे महत्व गजाभाऊला समजलेच पाहिजे.
इतकी वर्ष तुम्ही त्यांची नाराजी सहन केलीच ना, आता पाळी गजाभाऊची आहे.

अहो भाऊसाहेब -माझ्या वागण्याने असे काही होईल , हे खरे वाटतय तुम्हाला ?
वाहिनी - डेअरिंग की बात है. ते कराच, शिवाय "बायको म्हणून तुम्ही तुमची सगळी शस्त्र आता बिंधास वापरा.
नाराजी असणारे आमचे गजाभाऊ .तुमच्या हर एक सांगण्याला राजी होणार .
वाहिनीच्या चेहेर्यावर छानस स्मित उमटलेले पाहून , त्यांच्या उद्याच्या जीवनातले सुखाचे दिवस मला दिसत होते.
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कथा -
गजाभाउंचा  नाराजी-नामा "
ले- अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
मो- ९८५०१७७३४२ 
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