Tuesday, May 6, 2014

कविता- माहेर...!

कविता-  माहेर…!
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
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माहेराचे घर
आहे मोठे छान
झाले जरी मोठी
इथे होते  लहान ….!

दारी उभी असे
वाट पाहे माय
पोर  माझी तिला
दुधावरली साय …….!

आईचे हो घर
सुखाचे गोकुळ
माहेराच मन
मायेच मोहोळ ….!

मुक्कम  सरतो
जीव होतो जड
डोळा काठां पाणी
मनी धड धड ……. !

मनी हूर हूर
होते  आठवण
मन पाखरास
दिसते माहेर ……। !
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कविता - माहेर …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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