Saturday, June 27, 2015

कविता - नशिबास वेळ हो मिळेना ..!

कविता - , नशिबास वेळ हो मिळेना ....!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे .
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वेदना -दुख: यातनांची रात्र सरता सरेना
भोग असे हे नशिबात का माझ्या ? काही कळेना  ||

मान्य आहे  मजला .सुख- दुखः या जीवनाच्या बाजू
सुख दाखविते  वाकुल्या ,दुखः  ते पळता पळेना     ||

अंधार असतो म्हणे ,  आपला पाहुणा हा रात्रीचा
बसला इथेच हा ,सकाळ  झाली कधी ? ते कळेना      ||

येईल अशी एक ,जी असेल पहाट माझ्यासाठी
जीव आला कंठाशी आता , वेळ येण्याची ती जुळेना   ||

का व्यर्थ शोक करिसी असा ,? विचारता कुणी , सांगे
भले करण्या माझे, नशिबास वेळ हो मिळेना ....!    ||
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कविता - , नशिबास वेळ हो मिळेना ....!
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे .
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