Friday, October 2, 2015

कविता - मन हे ...!

कविता - मन हे ...!
-अरुण वि .देशपांडे .
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धुक्यात हरवलेल्या वाटा
शोधिते शोधिते मन वेडे 
क्षितिजा पर्यंत वाटा असती
धावते तिथ पर्यंत वेडे .....!
निळ्याशार निरभ्र अंबरी
मनपाखरू फिरे भिरभिरी
सायंकाळी संधिप्रकाशात
फिरे माघारी मग मन वेडे ...!
पहाटेच्या कोवळ्या उन्हात
होई पुन्हा रोज ताजेतवाने
विसरुनी कालची निराशा
मन भिडे जीवनास नव्याने ....!
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कविता - मन हे ...!
-अरुण वि .देशपांडे -पुणे..
मो-९८५०१७७३४२
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