कविता - ते पुन्हा आठवले ...!
-अरुण वि.देशपांडे .
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कोरड्या ठप्प नदीच्या काठी बसता
खेळकर रूप तिचे ते आठवले ||
हीच नदी हाच तिचा तो किनारा
पाण्यातले पाय , स्पर्श ते आठवले ||
वाळूत नावांची ती नक्षीदार कोरणी
तुझे स्मित चांदणे तेही आठवले ||
कविता मन चिंब चिंब करणार्या
भारलेले शब्द ते पुन्हा आठवले ||
जादूचे क्षणते - दिवसही तसेच ते
मोरपीस मन तळातले ,ते आठवले ||
आयुष्य झाले आजचे कोरडे जगणे
अजुनी आठवणी ओल्या ,हे आठवले ||
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कविता - ते पुन्हा आठवले ...!
-अरुण वि.देशपांडे .-पुणे .
मो- ९८५०१७७३४२
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