कविता - गोष्ट आहे हीच खरी .
-अरुण वि.देशपांडे
----------------------------------------------------------------
घुटमळती पावले अजुनी त्या वळणावरी
जायचे पुढती मागचे टाकुनी मागे जरी .||
भास होते ते सारेच मनास ते जे जे वाटले
व्रण जखमांचे आत ताजे वरुनी कोरडे जरी ..||
का असे वागती माणसे जी आपलीच वाटली
होती नाती आपल्यातली ती खोटी की खरी ?..||
हात दिलेत ते साथ सोबत करण्यासाठी
का हात हे अचानक जीवाचा असा घात करी ..||
निसरड्या रस्त्याची वाट मोह याचाच होई
बिकट पायवाट आजकाल जो तो टाळतो खरी ||
दिपवणारे प्रकाशझोत सतत जे डोळ्यावरी
पाहावे नेमके काय काय मनास पडे भ्रांत खरी ...||
असेच आहे वर्तमान सांप्रत ,जगणे हतबल
माना अथवा न माना ,गोष्ट आहे हीच खरी ....||
-----------------------------------------------------------------------
-कविता - गोष्ट आहे हीच खरी ..
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
--------------------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment