Wednesday, November 26, 2014

कविता - करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

कविता - करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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काय माहिमा सांगावा कलियुगाचा
मलीन झाले पहा आमुचे  अंतरंग
स्वछ करण्यासाठी हा  मनगाभारा
करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

किती प्रलोभने ही  मनासाठी सारी
हे मिळावे ते मिळावे - धडपड ती सारी
वळविण्या या पासुनी मनास ,आता
करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!

नशीब आमुचे इतके धड कुठे आहे
सत्संगा पासून हमेशा दूर दूर राहे
कळण्या यास सारे ते अभंग - रंग
करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

सहृदयी -संत , त्यांचे कृपाळू  अंतरंग
जन प्रबोधनासाठी त्यांनी रचिले अभंग
जानुनी घेता उजळेल आमुचे अंतरंग
करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
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कविता - करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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काय माहिमा सांगावा कलियुगाचा
मलीन झाले पहा आमुचे  अंतरंग
स्वछ करण्यासाठी हा  मनगाभारा
करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

किती प्रलोभने ही  मनासाठी सारी
हे मिळावे ते मिळावे - धडपड ती सारी
वळविण्या या पासुनी मनास ,आता
करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!

नशीब आमुचे इतके धड कुठे आहे
सत्संगा पासून हमेशा दूर दूर राहे
कळण्या यास सारे ते अभंग - रंग
करावा नित्य संतसाहित्याचा संग …।!

सहृदयी -संत , त्यांचे कृपाळू  अंतरंग
जन प्रबोधनासाठी त्यांनी रचिले अभंग
जानुनी घेता उजळेल आमुचे अंतरंग
करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
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कविता - करावा नित्य  संतसाहित्याचा संग …।!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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