Friday, April 17, 2015

कविता - वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!

कविता - वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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काय माहौल इथला सांगू लोकहो
मेहफिल भरजरी ही सजली सारी
मुखवटे सुंदरसे दिसती चेहेरी
वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!

मनास विसरुनी जगती हे सारे
मृगजला पाठी धावणे यांचे सारे
अफाट धावूनी  थकती किती सारी
वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!

रिझवण्या गात्रास आपल्या येती येथे
कला  अवगत असते सर्वांना सारी
बेमालूम फसवणेही  जमते भारी
वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!
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कविता - वेदनेचे घोट परी रिचविती सारी ….!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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