कविता - दिसे किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
--------------------------------------------------------------------------
दिसे किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
हरवून जाते हे मन यात रोज रोज ……!
रूप कोणते खरे , अन खोटे कोणते ?
गोंधळून जाते मन बिचारे रोज रोज
तमाशे इथे नित नवीन होती रोज रोज
हरवून जाते हे मन यात रोज रोज ………!
रंक ही येथे ,राव ही ते भेटती रोज रोज
कुणी नसे हो कुणा सारखा यातला तो
उर फुटे स्तोवर धावे पैश्या साठी जोतो
दोष देतो नशिबास नि जगतो रोज रोज ……!
अफाट हे दुनिया ,सारेच इथले न्यारे
पसारा मुलखाचा ,वारे इथले न्यारे
जो लढतो जगण्याची लढाई इथली
सलाम त्यास करी हीच दुनिया रोज रोज …।!
दिसे किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
हरवून जाते हे मन यात रोज रोज ……!
--------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता - दिसे किती मोहक ही दुनिया रोज रोज ….!
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
-------------------------------------------------------------------------------------------------------
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
--------------------------------------------------------------------------
दिसे किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
हरवून जाते हे मन यात रोज रोज ……!
रूप कोणते खरे , अन खोटे कोणते ?
गोंधळून जाते मन बिचारे रोज रोज
तमाशे इथे नित नवीन होती रोज रोज
हरवून जाते हे मन यात रोज रोज ………!
रंक ही येथे ,राव ही ते भेटती रोज रोज
कुणी नसे हो कुणा सारखा यातला तो
उर फुटे स्तोवर धावे पैश्या साठी जोतो
दोष देतो नशिबास नि जगतो रोज रोज ……!
अफाट हे दुनिया ,सारेच इथले न्यारे
पसारा मुलखाचा ,वारे इथले न्यारे
जो लढतो जगण्याची लढाई इथली
सलाम त्यास करी हीच दुनिया रोज रोज …।!
दिसे किती मोहक ही दुनिया रोज रोज
हरवून जाते हे मन यात रोज रोज ……!
--------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता - दिसे किती मोहक ही दुनिया रोज रोज ….!
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
-------------------------------------------------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment