Monday, September 22, 2014

कविता -खंत

कविता -  खंत .
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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कुणी साथ सोडोनी निघुनी जाता .
खंत का वाटावी  हो मनास  आता     ।।

समजुतीच्या  फंदात नको पडणे
कुणी समजुन घेईनासे झाले आता   ।।

भावना झाल्या इथे आता प्रदूषित
मोकळेपणात   परकेपणा   आता     ।।
 
मनाचे बांध ते  कोरडेठप्प  आता 
व्यर्थ  डागडुजी नको करणे आता     ।।
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कविता -  खंत .
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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