Friday, May 3, 2013

कविता - सांज ही, न सांगताच मावळून गेली ...!

कविता - सांज ही , न सांगताच मावळून गेली …!
अरुण वि देशपांडे -पुणे
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वेळ सारी ती केव्न्हाच निघुनी गेली
लाट अकस्मात आली विरून गेली
समुद्राच्या काठी तसाच तिष्ठत तू ,
सांज ही , न सांगताच मावळून गेली …!

हातात जरी नसे कधी काही आपुल्या
परक्या सावल्या ही होती की आपुल्या
वीज ती आली अन डोळे दिपवून गेली
सांज ही , न सांगताच मावळून गेली …!

सोबतीची सवय मनासी ती होते
मनात अलगद मन गुंतुनी जाते
पायवाट सोबतीची हरवून गेली
सांज ही, न सांगताच मावळून गेली …!
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कविता - सांज ही, न सांगताच मावळून गेली …!
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .

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