Wednesday, May 1, 2013

कविता- कविता लिहितांना मला ...!

रसिक हो-
काल नाशिक "गारवा"- स्नेह्-सम्मेलनात मी सादर केलेली
माझी कविता -
"कविता लिहितांना मला "- आपल्यासाठी सादर -
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कविता लिहितांना मला -
(मन डोह कविता संग्रहातून)
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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कविता लिहितांना मला
नव्याने सापडतो मीच मला
हरवून गेलेले खूप काही
अलगद सापडते मग मला …।!

नाद अनाहत ऐकू येई
अंतर्बाह्य भारला जाई
विसर पडे जगाचा मग
कविता लिहितांना मला ……।

माणसातला माणूस कसा ?
जगण्यातले जगणे कसे ?
उलगडते हे अवघे कोडे
कविता लिहितांना मला …।

जग असू दे कितीही कठोर
शब्द असती फुलापरी कोमल
विशाल अर्थ छटांच्या जगात या
सहज प्रवेश असतो मला ……।

लिहितांना कविता मला
नव्याने सापडतो मीच मला ….!
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कविता लिहितांना मला …….!
(मन डोह कविता संग्रहातून)
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .

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