Wednesday, February 20, 2013

कविता - मनी वसे ते स्वप्नी दिसे.......!

कविता -

मनी वसे ते स्वप्नी दिसे .....!

-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.

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मन आपले असे कसे ?

विचारू नका हो हे असे

जितुकी माणसे भोवती

तितुकी मने वेगळी असे.....।।१ ।।

रंगुनी जाणे स्वप्नात हा

छंद मनाचा आवडता

मनात मग जे रेंगाळे

मनी वसे ते स्वप्नी दिसे ....।। २ ।।

वास्तवातील जगणे हो

परीक्षा मनाचे रोज असे

श्रांत होण्यासठी बिचारे

स्वप्नी आनंद शोधीतसे ....।।३ ।।

सुखाच्या शोधात निघता

मृगजळ दिसे ठायी ठायी

निराशा घेरुनी टाकी मना

त्यास स्वप्न उभारी असे ......।।४ ।।

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-कविता - मनी वसे ते स्वप्नी दिसे....!

-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.

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