-कविता -विनाकारण असेच …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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विनाकारण असेच
शून्य होई का हे मन ?
टाकून बसते मान
मलूल त्या फुलापरी ….!
रोजचेच जिणे सारे
भारवाही झाले खरे
खांदे दोन्ही झुकले
बळ नाही पहिल्यापरी …!
चित्तात समाधान हे
नाही मुळीच राहिले
मिळवावे किती किती
भान ही ना राहिले ….!
हुरूप मनासी येण्या
काय करावे हो आता ?
नवी उमेद ,नवी आशा
कुणी जागवावी आता …!
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कविता -विनाकारण असेच …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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विनाकारण असेच
शून्य होई का हे मन ?
टाकून बसते मान
मलूल त्या फुलापरी ….!
रोजचेच जिणे सारे
भारवाही झाले खरे
खांदे दोन्ही झुकले
बळ नाही पहिल्यापरी …!
चित्तात समाधान हे
नाही मुळीच राहिले
मिळवावे किती किती
भान ही ना राहिले ….!
हुरूप मनासी येण्या
काय करावे हो आता ?
नवी उमेद ,नवी आशा
कुणी जागवावी आता …!
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कविता -विनाकारण असेच …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
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