Friday, April 12, 2013

कविता - मन एक झाड ...!

कविता - मन एक झाड …!
( मन डोह -कविता संग्रहातून )
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे
---------------------------------------------------------------------------------
मन एक झाड , मरगळ त्याची पानगळ
हरवे उमेद त्याची , ही फसगत निव्वळ

मन एक झाड , किती किती कोमेजे
शोधी आशाळभूत ते , हवे हवेहवेसे  जे

बरसला बरसला , एकदा पाऊस बरसला
ओसाड या झाडाला , हिरवाई देऊन गेला

उगवे ते  कोंब कोवळे , धिटाई पहा किती
उसळाई  त्याची वरती , आकाशा स्पर्शण्या

मन एक झाड , खुलले फुलले पहा पुन्हा
तरारले  तरारले  ते , नव्या उमेदिनॆ पुन्हा …।
------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता - मन एक झाड …!
(मन डोह - कविता संग्रहातून )
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
---------------------------------------------------------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment