कविता - मन एक झाड …!
( मन डोह -कविता संग्रहातून )
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे
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मन एक झाड , मरगळ त्याची पानगळ
हरवे उमेद त्याची , ही फसगत निव्वळ
मन एक झाड , किती किती कोमेजे
शोधी आशाळभूत ते , हवे हवेहवेसे जे
बरसला बरसला , एकदा पाऊस बरसला
ओसाड या झाडाला , हिरवाई देऊन गेला
उगवे ते कोंब कोवळे , धिटाई पहा किती
उसळाई त्याची वरती , आकाशा स्पर्शण्या
मन एक झाड , खुलले फुलले पहा पुन्हा
तरारले तरारले ते , नव्या उमेदिनॆ पुन्हा …।
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कविता - मन एक झाड …!
(मन डोह - कविता संग्रहातून )
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
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( मन डोह -कविता संग्रहातून )
-अरुण वि. देशपांडे -पुणे
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मन एक झाड , मरगळ त्याची पानगळ
हरवे उमेद त्याची , ही फसगत निव्वळ
मन एक झाड , किती किती कोमेजे
शोधी आशाळभूत ते , हवे हवेहवेसे जे
बरसला बरसला , एकदा पाऊस बरसला
ओसाड या झाडाला , हिरवाई देऊन गेला
उगवे ते कोंब कोवळे , धिटाई पहा किती
उसळाई त्याची वरती , आकाशा स्पर्शण्या
मन एक झाड , खुलले फुलले पहा पुन्हा
तरारले तरारले ते , नव्या उमेदिनॆ पुन्हा …।
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कविता - मन एक झाड …!
(मन डोह - कविता संग्रहातून )
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
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