Thursday, April 4, 2013

कविता - गीत गाईन म्हणतो ...!


कविता - गीत गाइन म्हणतो ...!
-अरुण .वि.देशपांडे -पुणे

------------------------------------------------------------------
वेळ असेल तुला आज तर गीत गाईन म्हणतो
नवे जरी सर्वांसाठी ते , तुझ्या ओळखीचेच म्हणतो .
गाणे एक तुझे माझे काल होते ,  तेच आज म्हणतो
नवे जरी सर्वांसाठी ते,  तुझ्या ओळखीचेच म्हणतो ...।। १ ||

विसरलीस  जरी  क्षण सारे ,अजुनी मी आठवतो
शब्द न शब्द फुलापरी  मनात , सारे ते  साठवतो
बदलतात माणसे अचानक,   मी हे ऐकून होतो
काय उणीवा दिसल्या तुजला ,विचार करीत होतो...||  २ ||

शब्द आपुले ,संगीत त्यातले  , एकरूप दोघे होतो
बेसूर होता सुरावट सारी  , मी एकटा  झालो होतो
तेच गीत तेच गाणे आज, मी पुन्हा एकदा म्हणतो
नवे जरी सर्वांसाठी  ते,  तुझ्या  ओळखीचेच  म्हणतो  ।। ३ ||
------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता - गीत गाइन म्हणतो ...!

-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment