कविता - गीत गाइन म्हणतो ...!
-अरुण .वि.देशपांडे -पुणे
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वेळ असेल तुला आज तर गीत गाईन म्हणतो
नवे जरी सर्वांसाठी ते , तुझ्या ओळखीचेच म्हणतो .
गाणे एक तुझे माझे काल होते , तेच आज म्हणतो
नवे जरी सर्वांसाठी ते, तुझ्या ओळखीचेच म्हणतो ...।। १ ||
विसरलीस जरी क्षण सारे ,अजुनी मी आठवतो
शब्द न शब्द फुलापरी मनात , सारे ते साठवतो
बदलतात माणसे अचानक, मी हे ऐकून होतो
काय उणीवा दिसल्या तुजला ,विचार करीत होतो...|| २ ||
शब्द आपुले ,संगीत त्यातले , एकरूप दोघे होतो
बेसूर होता सुरावट सारी , मी एकटा झालो होतो
तेच गीत तेच गाणे आज, मी पुन्हा एकदा म्हणतो
नवे जरी सर्वांसाठी ते, तुझ्या ओळखीचेच म्हणतो ।। ३ ||
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कविता - गीत गाइन म्हणतो ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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