Friday, May 15, 2015

कविता - माणसाची ...!

कविता - माणसाची …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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माणसे भेटती रोजला  नित्य नव्या रुपात इथे
नाना कळा त्यांच्यात , आहेत तऱ्हा तितक्याच इथे ..।। १ ।।

कुणी भोळा-कुणी गाभोळा, हर गोष्टीवरती डोळा
धेपी गुळाच्या पाहुनी ,लगेच होती हे सारे गोळा  ।। २ ।।

सफाईदार बोलणे , रुबाबदार यांचे दिसणे
क्षणात भुलती भोळे जन , पाहुनी  रूप देखणे   ।। ३ ।।

साध्या मनाच्या माणसाची इथे हो असते परीक्षा
सराईत सदा सलामत , साध्याच्या नशिबी शिक्षा  ।।४ ।।

स्वार्थात गोडी असे मोठी ,माणसा आंधळा करते
चांगले तर कधी घडत नाही , वाईट ते सारे घडते   ।। ५ ।।
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कविता - माणसाची …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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