कविता - माणसाची …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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माणसे भेटती रोजला नित्य नव्या रुपात इथे
नाना कळा त्यांच्यात , आहेत तऱ्हा तितक्याच इथे ..।। १ ।।
कुणी भोळा-कुणी गाभोळा, हर गोष्टीवरती डोळा
धेपी गुळाच्या पाहुनी ,लगेच होती हे सारे गोळा ।। २ ।।
सफाईदार बोलणे , रुबाबदार यांचे दिसणे
क्षणात भुलती भोळे जन , पाहुनी रूप देखणे ।। ३ ।।
साध्या मनाच्या माणसाची इथे हो असते परीक्षा
सराईत सदा सलामत , साध्याच्या नशिबी शिक्षा ।।४ ।।
स्वार्थात गोडी असे मोठी ,माणसा आंधळा करते
चांगले तर कधी घडत नाही , वाईट ते सारे घडते ।। ५ ।।
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कविता - माणसाची …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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माणसे भेटती रोजला नित्य नव्या रुपात इथे
नाना कळा त्यांच्यात , आहेत तऱ्हा तितक्याच इथे ..।। १ ।।
कुणी भोळा-कुणी गाभोळा, हर गोष्टीवरती डोळा
धेपी गुळाच्या पाहुनी ,लगेच होती हे सारे गोळा ।। २ ।।
सफाईदार बोलणे , रुबाबदार यांचे दिसणे
क्षणात भुलती भोळे जन , पाहुनी रूप देखणे ।। ३ ।।
साध्या मनाच्या माणसाची इथे हो असते परीक्षा
सराईत सदा सलामत , साध्याच्या नशिबी शिक्षा ।।४ ।।
स्वार्थात गोडी असे मोठी ,माणसा आंधळा करते
चांगले तर कधी घडत नाही , वाईट ते सारे घडते ।। ५ ।।
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-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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