Friday, May 8, 2015

ढाळू नकोस ….!

कुसुमाकर मासिक -मे-२०१५ अंकात प्रकाशित कविता
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ढाळू नकोस ….!
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ढाळू नकोस अनमोल आसवांना अशी
आठवेल तुला ,तुझे चुकले काय ,नि कधी ?

ये भानावर तर जराशी तुही आता
स्वतःचा विचार करणार कधी ?
ढाळू नकोस अनमोल आसवांना अशी
आठवेल तुला ,तुझे चुकले काय ,नि कधी ?
फसवणे हा एक खेळ सोपा इथला
कोण तरला ,कोण बुडला ,हिशेब ना कधी
ढाळू नकोस अनमोल आसवांना अशी
आठवेल तुला ,तुझे चुकले काय ,नि कधी ?
केले प्रेम मनापासुनी ज्याच्यावरती
त्याचेच नव्हते प्रेम तुझ्यावरती
बहारीचा वसंत गेला ,उजाड झाले कधी ?
जगणे आहे तुजला ,चुकणार नाही कधी ।
ढाळू नकोस अनमोल आसवांना अशी
आठवेल तुला ,तुझे चुकले काय ,नि कधी ?
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कविता -ढाळू नकोस …!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
मो- ९८५०१७७३४२
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