Monday, May 18, 2015

कविता- जीवनातले ऋतुचक्र हे रोज नव्याने येते ..!

कविता -  जीवनातले ऋतुचक्र हे रोज नव्याने येते ..!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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जीवनातले ऋतुचक्र हे रोज नव्याने येते
दिवस ढळतो असाच  ,रात्र तशीच सरते …!

मुक्त हस्ते अमापसे निसर्गाचे देणे असते
माणूस हावरट  ,ओरबाडणे चालू असते
जीवनातले ऋतुचक्र हे रोज नव्याने येते …
दिवस ढळतो असाच ,रात्र तशीच सरते …!

अंदाधुंद कारभार ,व्यवहार फसवे सारे ते
फायद्यासाठी वाट्टेल ते करण्यासाठी तयार ते
भान विसरुनी जाते यात सारे ,काही न कळते
दिवस ढळतो  असाच  ,रात्र तशीच सरते …!

लाभले  आयुष्य कशासाठी ?, काय आपण करतो ,?
विचार कुणी याचा करता , वेडा तो मग ठरतो
सुखाच्या कल्पना भ्रामक , मनात कुणी रंगवतो
मन रमते यात सहज  ,बाकी सारे विसरते ।!

जीवनातले ऋतुचक्र हे रोज नव्याने येते
दिवस ढळतो असाच  ,रात्र तशीच सरते …!
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कविता - जीवनातले ऋतुचक्र हे रोज नव्याने येते ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
मो- ९८५०१७७३४२
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