कविता - सांगावा सखीचा
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सांगावा सखे मिळाला
जीव भेटीस आतुरला
वाटे कधी पाहीन तुला
निघालो बघ भेटायला
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सांगावा सखे मिळाला
जीव भेटीस आतुरला
वाटे कधी पाहीन तुला
निघालो बघ भेटायला
तू गेलीस तिकडे अन
जीव व्याकुळला इकडे
जो भेटे तो मज विचारे
असे काय झालं रे तुला
जीव व्याकुळला इकडे
जो भेटे तो मज विचारे
असे काय झालं रे तुला
दिवस जाई कसा बसा
रात्र एकटी मोठी वाटे
भकास आकाशात या
चंद्र एक अकेला वाटे
रात्र एकटी मोठी वाटे
भकास आकाशात या
चंद्र एक अकेला वाटे
आसुसला जीव तुझा
जाणीव मजला आहे
निघालो तुज भेटाया
अधीरता मनी ग दाटे
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कविता- सांगावा सखीचा
-अरुण वि.देशपांडे-पुणे.
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(प्रकाशित-दै.संचार-सोलापूर)
जाणीव मजला आहे
निघालो तुज भेटाया
अधीरता मनी ग दाटे
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कविता- सांगावा सखीचा
-अरुण वि.देशपांडे-पुणे.
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(प्रकाशित-दै.संचार-सोलापूर)
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