Monday, December 9, 2019

कविता - दिव्य अमृतवाणी - गुरुवाणी ||

दिव्य अमृतवाणी - गुरुवाणी ।।
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केली विनवणी । श्री गुरुचरणी ।
दिव्य गुरुवाणी । कानी पडो ।।
उपदेश बोल । आत गेले खोल ।
मन गोल गोल । स्थिरावले। ।।
कान उघाडणी । करी गुरुवाणी ।
ही अमृतवाणी । खरोखरी ।।
घडता दर्शन । हे अंतर मन ।
किती विलक्षण । बदलले ।।
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दिव्य अमृतवाणी -गुरुवाणी ।।
-अरुण वि.देशपांडे-पुणे.
9850177342
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