कविता - हे नियती ....!
-अरुण वि. .देशपांडे - पुणे
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आम्ही म्हणजे", तू चाबी भरलेले बाहुले
चाबी चालू केली की ,बंद पडे पर्यंत
नाचायचं फक्त तुझ्या तालावर
तू पुन्हा चाबी भरे पर्यंत...।
आमच्या मना सारख होतंय सार
भ्रम आमचा कायम ठेवतेस नेहमी
चालता नादात आमच्याच आम्ही
रस्त्यात खड्डे तूच ठेवतेस नेहमी ...!
जमीनीला विसरून हवेत असणारे
तुला खटकतात नेहमी , त्या साठी
अहंकारच्या फुग्यातील हवा त्यांच्या
अलगद तूच सोडतेस नेहमी ,,,!
सत्याचीच "सत्व-परीक्षा ",घेणे ..
आवडीचे तुझ्या एक काम आहे ,
भोग भोगावयास लावणे आम्हा
हे नियती , तुझेच काम आहे ....!
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-अरुण वि.देशपांडे - पुणे
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-अरुण वि. .देशपांडे - पुणे
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आम्ही म्हणजे", तू चाबी भरलेले बाहुले
चाबी चालू केली की ,बंद पडे पर्यंत
नाचायचं फक्त तुझ्या तालावर
तू पुन्हा चाबी भरे पर्यंत...।
आमच्या मना सारख होतंय सार
भ्रम आमचा कायम ठेवतेस नेहमी
चालता नादात आमच्याच आम्ही
रस्त्यात खड्डे तूच ठेवतेस नेहमी ...!
जमीनीला विसरून हवेत असणारे
तुला खटकतात नेहमी , त्या साठी
अहंकारच्या फुग्यातील हवा त्यांच्या
अलगद तूच सोडतेस नेहमी ,,,!
सत्याचीच "सत्व-परीक्षा ",घेणे ..
आवडीचे तुझ्या एक काम आहे ,
भोग भोगावयास लावणे आम्हा
हे नियती , तुझेच काम आहे ....!
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-अरुण वि.देशपांडे - पुणे
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