Saturday, March 19, 2016

कविता - जमत गेले मला ..! -अरुण वि देशपांडे

कविता - जमत गेले मला ..!
-अरुण वि देशपांडे 
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का आणि कसे ? शोधात निघता 
 शोधणेही जमत गेले मला ...!

 डोक्यात उजेड पडत गेला 
 जगणेही  जमत गेले मला 

उत श्रीमंतीचा पाहुनी नित्य 
 सावरणे जमत गेले मला  

रंगी-बेरंगी दुनिये पासून 
दूर होणे  जमत गेले मला 

नशिबी  असावे लागते सारे 
समजणे जमत गेले मला ...!

असूया , मत्सर नाही कामाचे 
स्वीकारणे जमत गेले मला ..!
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कविता - जमत गेले मला ..!
-अरुण वि देशपांडे 
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