कविता - जमत गेले मला ..!
-अरुण वि देशपांडे
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का आणि कसे ? शोधात निघता
शोधणेही जमत गेले मला ...!
डोक्यात उजेड पडत गेला
जगणेही जमत गेले मला
उत श्रीमंतीचा पाहुनी नित्य
सावरणे जमत गेले मला
रंगी-बेरंगी दुनिये पासून
दूर होणे जमत गेले मला
नशिबी असावे लागते सारे
समजणे जमत गेले मला ...!
असूया , मत्सर नाही कामाचे
स्वीकारणे जमत गेले मला ..!
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कविता - जमत गेले मला ..!
-अरुण वि देशपांडे
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