कविता- "मन आतुरले रे ..! -अरुण वि .देशपांडे -पुणे
-----------------------------------------------------------
रिमझिम रिमझिम सावन आला रे सखया
ये लवकरी, मन आतुरले रे तुज भेटाया ...|| धृ ||
विरहाचे दिवस संपले कसे आपले
आठवणी त्याच्या आता काढू नको या
त्या एकल्या रात्री आता रे संपल्या
ये लवकरी, मन आतुरले रे तुज भेटाया ......||१||
सरले एकदाचे रे क्षण दुराव्याचे
मनी रंग भरले रे गोड मीलनाचे
ओढ जाणुनी मनाची माझ्या सखया
ये लवकरी, मन आतुरले तुज भेटाया ..........||२||
सहवासे अधिक रंगते प्रीती मनांची
विरहाने वाढते खरी खुमारी प्रेमाची
जाणुनी घेऊ आपण दोघे अर्थ सखया
ये लवकरी ,मन आतुरले रे तुज भेटाया .......||३ ||
----------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता- " मन आतुरले रे.......! -अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
-----------------------------------------------------------
रिमझिम रिमझिम सावन आला रे सखया
ये लवकरी, मन आतुरले रे तुज भेटाया ...|| धृ ||
विरहाचे दिवस संपले कसे आपले
आठवणी त्याच्या आता काढू नको या
त्या एकल्या रात्री आता रे संपल्या
ये लवकरी, मन आतुरले रे तुज भेटाया ......||१||
सरले एकदाचे रे क्षण दुराव्याचे
मनी रंग भरले रे गोड मीलनाचे
ओढ जाणुनी मनाची माझ्या सखया
ये लवकरी, मन आतुरले तुज भेटाया ..........||२||
सहवासे अधिक रंगते प्रीती मनांची
विरहाने वाढते खरी खुमारी प्रेमाची
जाणुनी घेऊ आपण दोघे अर्थ सखया
ये लवकरी ,मन आतुरले रे तुज भेटाया .......||३ ||
----------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता- " मन आतुरले रे.......! -अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment