Sunday, June 24, 2012

कविता- "मन आतुरले रे ..!

कविता- "मन आतुरले रे ..!                                                                       -अरुण वि .देशपांडे -पुणे
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रिमझिम रिमझिम सावन आला रे सखया
ये लवकरी, मन आतुरले रे तुज भेटाया ...|| धृ ||
विरहाचे दिवस संपले कसे आपले
आठवणी त्याच्या आता काढू नको या
 त्या एकल्या रात्री आता रे संपल्या
ये लवकरी, मन आतुरले रे तुज भेटाया ......||१||
सरले एकदाचे रे  क्षण दुराव्याचे
मनी रंग भरले रे गोड  मीलनाचे
ओढ जाणुनी मनाची माझ्या सखया
ये लवकरी, मन आतुरले तुज भेटाया ..........||२||
सहवासे  अधिक रंगते प्रीती मनांची
विरहाने वाढते खरी खुमारी प्रेमाची
जाणुनी घेऊ आपण दोघे अर्थ  सखया
ये लवकरी ,मन आतुरले रे तुज भेटाया .......||३ ||
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कविता- " मन आतुरले रे.......!                                                    -अरुण वि. देशपांडे -पुणे.
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Rimzim Rimzim

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