कविता - रित- विपरीत -अरुण वि .देशपांडे -पुणे.
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शब्द हे अवघे
भावनांचे रूप
कठोर मनाला
कशाचे अप्रूप ?.......|
फुटे का पाझर
दगडाला कधी ?
अश्रुंना बंद
डोळ्यांची दार .......!
मधुर बोलणे
बंद झाला छंद
फटकळ बोल
देतात आनंद ........!
मन वेडे भोळे
त्याला हे "ना - कळे
जगण्याची कशी
रित- विपरीत..!......!
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कविता-- रित- विपरीत .......! -अरुण वि देशपांडे -पुणे
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शब्द हे अवघे
भावनांचे रूप
कठोर मनाला
कशाचे अप्रूप ?.......|
फुटे का पाझर
दगडाला कधी ?
अश्रुंना बंद
डोळ्यांची दार .......!
मधुर बोलणे
बंद झाला छंद
फटकळ बोल
देतात आनंद ........!
मन वेडे भोळे
त्याला हे "ना - कळे
जगण्याची कशी
रित- विपरीत..!......!
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कविता-- रित- विपरीत .......! -अरुण वि देशपांडे -पुणे
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