तुमचा -आमचा पाउस || -अरुण वि .देशपांडे -पुणे.
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क्षितिजा काठी तो दिसता
खिडकीशी मीही थबकतो
निळ्याशार अंबरी जमल्या
घन निळ्या मित्राना पाहतो ...........||
पावसाच्या दूतांना पाहुनी
या या मित्र हो ,मी विनवितो
घेत नाही मग आढेवेढे तो
आणि मनमुराद कोसळतो ............||
मित्र असे मोकळे असावे
आत-बाहेर काही नसावे
देणे पावसापरी जमावे
जीवनी सुख होऊनी यावे .......||
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कविता - तुमचा-आमचा पाउस " -अरुण वि . देशपांडे -पुणे
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क्षितिजा काठी तो दिसता
खिडकीशी मीही थबकतो
निळ्याशार अंबरी जमल्या
घन निळ्या मित्राना पाहतो ...........||
पावसाच्या दूतांना पाहुनी
या या मित्र हो ,मी विनवितो
घेत नाही मग आढेवेढे तो
आणि मनमुराद कोसळतो ............||
मित्र असे मोकळे असावे
आत-बाहेर काही नसावे
देणे पावसापरी जमावे
जीवनी सुख होऊनी यावे .......||
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कविता - तुमचा-आमचा पाउस " -अरुण वि . देशपांडे -पुणे
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