||श्री || -अरुण वि .देशपांडे -पुणे.
कविता - सांगू सखे -काय तुजला ...!
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सांगू सखे काय तुजला मी
हाल माझ्या मनाचे ते कसे
होता नजरा - नजर तुझी
कळेल , माझे मन ते कसे ..! ||
स्वप्नात असतेस तू , अन
सत्यात पाहतो तुजला
अस्तित्व तुझे, जग ते माझे
एवढे आहे ठावे मजला .......! ||
ओंजळीत आलो घेउनी मी
उमलत्या फुलांचा गजरा
दिसतेस किती सुंदर तू
खुले रंग निळा हा साजरा .......! ||
म्हणतेस सदाच तू मला
होतसे काय या पाहण्याने ?
जीवन लाभते दरवेळी मला
सखे, तुझ्या एका पाहण्याने ....! ||
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कविता - सांगू सखे -काय तुजला ...! -अरुण वि . देशपांडे -पुणे
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कविता - सांगू सखे -काय तुजला ...!
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सांगू सखे काय तुजला मी
हाल माझ्या मनाचे ते कसे
होता नजरा - नजर तुझी
कळेल , माझे मन ते कसे ..! ||
स्वप्नात असतेस तू , अन
सत्यात पाहतो तुजला
अस्तित्व तुझे, जग ते माझे
एवढे आहे ठावे मजला .......! ||
ओंजळीत आलो घेउनी मी
उमलत्या फुलांचा गजरा
दिसतेस किती सुंदर तू
खुले रंग निळा हा साजरा .......! ||
म्हणतेस सदाच तू मला
होतसे काय या पाहण्याने ?
जीवन लाभते दरवेळी मला
सखे, तुझ्या एका पाहण्याने ....! ||
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कविता - सांगू सखे -काय तुजला ...! -अरुण वि . देशपांडे -पुणे
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