Sunday, July 28, 2013

कविता - गळक्या ओंज्ळीचे हात आपले ..!

कविता -  गळक्या ओंजळीचे हात आपले
-अरुण वि . देशपांडे - पुणे
------------------------------------------------------------------------------------------
गळक्या ओंजळीचे हात आपले
त्यात कधीही काहीच ना मावले
जेजे मनाला कधी कधी भावले
नशिबास मात्र कधी ना भावले ……. !

भोवताली भरलेले आनंद मेळे
गेलेला  त्यात अलगद  मिसळे
फिरकलो चकुन तिकडे जेव्न्हां
दरवाजे उघडे,  बंद केले गेले
जेजे मनाला कधी कधी भावले
नशिबास मात्र कधी ना भावले ……. !

 पाहण्या  सुंदरतेचे बाग- बगीचे
 मन असे सदाचे आसुसलेले
 तुच्छतेच्या नजरेशी नजर मिळता
 मन शेवटी हिरमुसन गेले ………. !

 गळक्या ओंजळीचे हात आपले
 त्यात कधीही काहीच ना मावले ……. !
--------------------------------------------------------------------------------------
कविता - गळक्या ओंजळीचे हात आपले …!
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
---------------------------------------------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment