कविता - गळक्या ओंजळीचे हात आपले
-अरुण वि . देशपांडे - पुणे
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गळक्या ओंजळीचे हात आपले
त्यात कधीही काहीच ना मावले
जेजे मनाला कधी कधी भावले
नशिबास मात्र कधी ना भावले ……. !
भोवताली भरलेले आनंद मेळे
गेलेला त्यात अलगद मिसळे
फिरकलो चकुन तिकडे जेव्न्हां
दरवाजे उघडे, बंद केले गेले
जेजे मनाला कधी कधी भावले
नशिबास मात्र कधी ना भावले ……. !
पाहण्या सुंदरतेचे बाग- बगीचे
मन असे सदाचे आसुसलेले
तुच्छतेच्या नजरेशी नजर मिळता
मन शेवटी हिरमुसन गेले ………. !
गळक्या ओंजळीचे हात आपले
त्यात कधीही काहीच ना मावले ……. !
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कविता - गळक्या ओंजळीचे हात आपले …!
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
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-अरुण वि . देशपांडे - पुणे
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गळक्या ओंजळीचे हात आपले
त्यात कधीही काहीच ना मावले
जेजे मनाला कधी कधी भावले
नशिबास मात्र कधी ना भावले ……. !
भोवताली भरलेले आनंद मेळे
गेलेला त्यात अलगद मिसळे
फिरकलो चकुन तिकडे जेव्न्हां
दरवाजे उघडे, बंद केले गेले
जेजे मनाला कधी कधी भावले
नशिबास मात्र कधी ना भावले ……. !
पाहण्या सुंदरतेचे बाग- बगीचे
मन असे सदाचे आसुसलेले
तुच्छतेच्या नजरेशी नजर मिळता
मन शेवटी हिरमुसन गेले ………. !
गळक्या ओंजळीचे हात आपले
त्यात कधीही काहीच ना मावले ……. !
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कविता - गळक्या ओंजळीचे हात आपले …!
-अरुण वि. देशपांडे - पुणे .
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