Monday, July 29, 2013

कविता - मनाची समजूत ...!

कविता - मनाची  समजूत ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे .
-------------------------------------------------------------------
लोकांच्या गर्दीत चुकून एखादा  चेहेरा
आपला कुणी आहे असे वाटू लागते
व्यवहारी इतका निघतो तो , की
भावनेला किमत नसते  , हे पटू लागते ...।
का बरे असे वागत असतात आपलीच माणसे ?
मनाच्या आतली आहेत  ,हे सत्य  ना फारसे
शब्द्द आठावता त्यांचे ,किती खरे  ते  वाटले
कुठे हरवला भाव त्यातला ,मन  आज  शोधू  लागते ..।
आणा- भाका , त्या  शपथा  आणिक , किती विश्वास  होते
मर्जी फिरता  आता त्यांची , लगेच तोंड फिरवले होते
बदलते  रूप पाहुनी  आज त्यांचे ,मन भोवन्डले  होते..
मनाची समजूत घालण्या ,मित्रा  शब्द सापडत  नव्हते ...!
-------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता - मनाची समजूत ..!
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------

No comments:

Post a Comment