कविता- रात्र पावसाळी ही …।
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे
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लागली धार आसवांची
कशी ती थांबवू आता
श्रावणझड बाहेर ती
सोबतीस माझ्या आता …।
रात्र पावसाळी काय करू
कोसळेल रातभर पाऊस
मनास आता कसे आवरू ?
सावरण्यास यावेस आता …।
विरहाची रागिणी ओठावरी
आठवण दाटते या अंतरी
दोन मनातले अंतर सारे
हे संपवण्या यावेस तू आता ….।
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कविता- रात्र पावसाळी ही …।
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे
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-अरुण वि.देशपांडे - पुणे
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लागली धार आसवांची
कशी ती थांबवू आता
श्रावणझड बाहेर ती
सोबतीस माझ्या आता …।
रात्र पावसाळी काय करू
कोसळेल रातभर पाऊस
मनास आता कसे आवरू ?
सावरण्यास यावेस आता …।
विरहाची रागिणी ओठावरी
आठवण दाटते या अंतरी
दोन मनातले अंतर सारे
हे संपवण्या यावेस तू आता ….।
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कविता- रात्र पावसाळी ही …।
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे
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