Monday, July 29, 2013

कविता - आपणच असावे आपले सोबती ..!

कविता - आपण असावे आपले  सोबती ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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रस्ते नवे  खुणावतात दरवेळी अन
कोमेजलेले मन पुन्हा  घेते भरारी
अर्धवट स्वप्ने  पुन्हा तरळू लागता
सुचते नवेसे  मग मन घेई भरारी ...!
खाच -खळगे  वाटचालीत  ते  म्हणुनी
वाटचाल आपली , अशी  कधी का थांबते ?
आशेच्या  आधारे मग  चालावे  आपण
मुकामाचे ठिकाण आपले  नक्की येते ...!
रस्ते चालताना  नेहमी  घोळ होतो
हम रस्ते  रुळलेले  ते , सोडूनी  सारे
भूलव्या  पायवाटेचा  खूप  मोह  होतो
अशा कठीण वेळी-क्षण  कसोटीचा  होतो  ...!
आपणच असावे  हो सोबती आपले
आपणच आपले ठरवावे  हेच खरे
लोकांचे एक बरे असते , होवो  काही ,
म्हणती ,  बघा ,  आमचेच झाले ना  खरे ...!
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कविता - आपण असावे आपले सोबती ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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