कविता - आपण असावे आपले सोबती ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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रस्ते नवे खुणावतात दरवेळी अन
कोमेजलेले मन पुन्हा घेते भरारी
अर्धवट स्वप्ने पुन्हा तरळू लागता
सुचते नवेसे मग मन घेई भरारी ...!
खाच -खळगे वाटचालीत ते म्हणुनी
वाटचाल आपली , अशी कधी का थांबते ?
आशेच्या आधारे मग चालावे आपण
मुकामाचे ठिकाण आपले नक्की येते ...!
रस्ते चालताना नेहमी घोळ होतो
हम रस्ते रुळलेले ते , सोडूनी सारे
भूलव्या पायवाटेचा खूप मोह होतो
अशा कठीण वेळी-क्षण कसोटीचा होतो ...!
आपणच असावे हो सोबती आपले
आपणच आपले ठरवावे हेच खरे
लोकांचे एक बरे असते , होवो काही ,
म्हणती , बघा , आमचेच झाले ना खरे ...!
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कविता - आपण असावे आपले सोबती ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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-अरुण वि.देशपांडे -पुणे.
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रस्ते नवे खुणावतात दरवेळी अन
कोमेजलेले मन पुन्हा घेते भरारी
अर्धवट स्वप्ने पुन्हा तरळू लागता
सुचते नवेसे मग मन घेई भरारी ...!
खाच -खळगे वाटचालीत ते म्हणुनी
वाटचाल आपली , अशी कधी का थांबते ?
आशेच्या आधारे मग चालावे आपण
मुकामाचे ठिकाण आपले नक्की येते ...!
रस्ते चालताना नेहमी घोळ होतो
हम रस्ते रुळलेले ते , सोडूनी सारे
भूलव्या पायवाटेचा खूप मोह होतो
अशा कठीण वेळी-क्षण कसोटीचा होतो ...!
आपणच असावे हो सोबती आपले
आपणच आपले ठरवावे हेच खरे
लोकांचे एक बरे असते , होवो काही ,
म्हणती , बघा , आमचेच झाले ना खरे ...!
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कविता - आपण असावे आपले सोबती ...!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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