कविता - ओझे .....!
-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
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किती मोकळे आणि छान असते
मनावर नसते कशाचे ओझे ,
उलट अवस्था असते मनाची
वावरतो घेउनी एखादे ओझे.........! ।।१ ।।
काय सांगावे ,नसे अंदाज कधी
काय भावेल , काय रुचेल याचा
कसरत असते ही अवघड
असते मनावर खूप हे ओझे ....!...।।२ ।।
कोण कशाचा कसा लावील अर्थ
चुकता सगळे, निव्वळ अनर्थ
शब्द बुड बुडे -हरवतो अर्थ
असह्य होते मग सारे हे ओझे .....!..।। ३।।
परक्याला मन समजू नये हो ,
हे समजण्या सारखे एक वेळ
आपले कुणी असे वागले तर,
कसे वागवावे अवगढ ओझे ........! ।। ४ ।।
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कविता - ओझे ..!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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-अरुण वि.देशपांडे - पुणे.
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किती मोकळे आणि छान असते
मनावर नसते कशाचे ओझे ,
उलट अवस्था असते मनाची
वावरतो घेउनी एखादे ओझे.........! ।।१ ।।
काय सांगावे ,नसे अंदाज कधी
काय भावेल , काय रुचेल याचा
कसरत असते ही अवघड
असते मनावर खूप हे ओझे ....!...।।२ ।।
कोण कशाचा कसा लावील अर्थ
चुकता सगळे, निव्वळ अनर्थ
शब्द बुड बुडे -हरवतो अर्थ
असह्य होते मग सारे हे ओझे .....!..।। ३।।
परक्याला मन समजू नये हो ,
हे समजण्या सारखे एक वेळ
आपले कुणी असे वागले तर,
कसे वागवावे अवगढ ओझे ........! ।। ४ ।।
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कविता - ओझे ..!
-अरुण वि.देशपांडे -पुणे
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